ध्यान योग
(ध्यान का तरीका)
ये अध्याय उन लोगों के लिए बहुत उपयोगी है जिनकी उम्र 15 से 25 के बीच है, जिनकी एकाग्रता कम है जिसके कारण उनका मन पढाई में नहीं लगता और उनका काम भी प्रभावित होता है। इस अध्याय में अर्जुन और कृष्ण का संवाद आपके जीवन में बदलाव लाने वाला है। इस इस अध्याय में छह बिन्दुओं पर बात की गई है-
- योगी कौन है?
- योगी कैसे सोचता है?
- योग क्रिया कैसे की जाती है?
- मन क्या है और इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?
- मन प्रशांत होने का क्या मतलब है?
- श्रद्धा और योग का क्या संबंध है?
अर्जुन द्वारा पूछे गये ये छह प्रश्न ही इस अध्याय का सार है। आईये इन बिन्दुओं को गहराई से समझते हैं। मुझे लगता है कि यदि किसी ने कुछ बडा पाया है तो वो सिर्फ योगी बनकर ही प्राप्त किया है। श्रीकृष्ण भी तो योगी ही हैं, जो युद्ध भूमि पर खडे हैं उसके बावजूद मुस्करा रहे हैं। मुझे लगता है कि पूरी तरह से समर्पित होना, फल की इच्छा से ऊपर उठ जाना ही योगी बनना है। आईये इस अध्याय को और गहराई से समझें और अपने जीवन में बदलाव लायें। अर्जुन का कृष्ण से सवाल है कि योगी कौन है? तब कृष्ण जवाब देते हैं कि जो बिना फल की इच्छा किए कर्म किया जा रहा हो वही सच्चा योगी है। कर्म फल का त्याग करना एक गहराई की बात है। हम अक्सर डरते हैं क्यूंकि हमारा ध्यान कर्म करने से ज्यादा उसके फल पर रहता है। शरीर, मन और इन्द्रियों को योगी ही नियंत्रित कर सकता है और जब इंसान योगी बन जाता है तो वो सुख-दुःख, गर्मी-सर्दी से विचलित नहीं होता, ज्ञान और विज्ञान की खोज करते-करते कुछ ऐसे बन जाते हैं कि वो बाहर की वस्तुओं से प्रभावित नही होते है और त बवह कर्मयोगी बन जाता है।
योग क्रिया की चर्चा करते हुए कृष्ण कहते हैं कि योग क्रिया को समझने के लिए कुछ बिन्दुओं को समझना चाहिए-
- योग क्रिया के लिए एकांत मंे बैठना बहुत जरूरी है।
- जिस भूमि का अपने चयन किया है वो न तो ज्यादा ऊंची होनी चाहिए और न ही ज्यादा नीची।
- उस जमीन पर आसन बिछाना चाहिए।
- आप अपने शरीर को सीधा करके बैठें और आपका ध्यान आपकी नाक की सीध में होना चाहिए।
- कृष्ण कहते हैं कि ध्यान के समय आपके भाव शून्य होने चाहिए। ध्यान लगाते समय आपको अपने विचार शून्यता की स्थिति में जाना है क्यूंकि ऐसा करते समय आपका मन शांत हो जायेगा, मन भटकेगा नहीं, मन निर्मल हो जायेगा, एकाग्रता बढेगी। मुझे लगता है कि यह प्रक्रिया इस ध्यान योग का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। लेकिन अर्जुन कह रहे हैं कि कृष्ण ये तो बहुत कठिन कार्य है, मन तो भटकता है। कृष्ण कहते हैं कि तुम्हें इस बात का ध्यान रखना है कि तुम्हें न तो अधिक खाना है और न ही अधिक सोना, न कम खाना है और न ही कम सोना। ऐसा करते-करते आप समत्व स्थिति में आ जायेंगे। कृष्ण कहते हैं कि अर्जुन तुम्हें आहार-विहार का भी ध्यान रखना है। जब आहार-विहार, मन और शरीर की स्थिति समतल होगी तब आप योगी बनने लगेंगे। तब अर्जुन कहते हैं कि ऐसी स्थिति में क्या मन नियंत्रित हो जायेगा। मुझे लगता है कि आज जो भी समस्या है वो मन की उपज है फिर वो चाहे घरों में बढता हुआ विवाद हो जिस कारण एकल परिवारों की संख्या बढती जा रही है। ऐसी स्थिति में कृष्ण ने मन को नियंत्रित करने की दो विधियाँ बताई है- कृष्ण कहते हैं कि हमारा मन चंचल है जिसे नियंत्रित करने के लिए निरंतर अभ्यास करना होगा। कृष्ण कहते हैं कि मन पर विजय पाने के लिए किसी जंगल में जाने की जरूरत नहीं है बल्कि इसके लिए जरूरी है कि जितनी वस्तु की आवश्यकता है उतना ही उपयोग करें। ये जरूरी है कि जीवन में हर चीज में संतुलन हो।
मुझे लगता है जब हम इन छोटी-छोटी चीजों से आगे बढ जाते हैं तब हम ऐसे फैसले लेने लगते हैं जो समाजोपयोगी हो और जिससे समाज में बदलाव आये। मन को नियंत्रित करने के लिए अभ्यास और वैराग्य चाहिए और जब दोनों साथ चलेंगे तो योगी बनना सहज हो जायेगा। कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन! जब मन को नियंत्रित कर लिया जाता है, तब मन शांत से प्रशांत बन जायेगा। प्रशांत से तात्पर्य ऐसी स्थिति से है जिसमें असीमित खुशियाँ समां जाती है। उस दौरान किया गया जप, चिंतन और युद्ध हमें ईश्वर की प्राप्ति कराता है, मुझे लगता है कि ये भी तो एक सतत् चलने वाली प्रक्रिया है और ब्रह्मचर्य इसका अनिवार्य रूप है। आखिर में कृष्ण बताते हैं कि व्यक्ति दो मार्गों से गुजरता है-एक है ज्ञान मार्ग और दूसरा है अज्ञान मार्ग। ज्ञान मार्ग से तात्पर्य चेतना, ऊर्जा और ईश्वर की समझ से है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है और अज्ञान मार्ग से तात्पर्य पदार्थों की खोज से है जिसके बाद पुनर्जन्म मिलता है। हम सभी देवताओं की पूजा करते हैं जबकि कृष्ण का कहना है कि देवताओं की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी। अगर वास्तव में हमें अपने जीवन की खोज करनी है और पुनर्जन्म की प्रक्रिया से पार जाता है तो हमें कृष्ण के संदेश को जानना पडेगा। अर्थात ऊँ का उच्चारण और सिमरन करना पडेगा और ऐसा करते-करते जब हमार मन हृदय में स्थित हो जायेगा तब हमें ऐसे आनंद की प्राप्ति होगी जिससे हमारे आस-पास की प्रकृति बहुत सामान्य प्रतीत होने लगेगी। हम फिर मिलेंगे अगले अध्याय में जिसका नाम है-’ज्ञानविज्ञान योग’ जिसमें हम एक रहस्य को जानेंगे। क्या है वह रहस्य जो श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं उस रहस्य को जानने के लिए बने रहिये इस यात्रा में जिसका नाम है श्रीमद् भगवद गीता संजय की नजर से…..
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