प्र.1 करियर काउन्सलिंग व कोचिंग का क्या अर्थ है? क्या ये दोनों चीजें एक हैं या एक-दूसरे से अलग हैं?
उत्तर :
सबसे पहले तो मैं आपको बता दूं ये जो समय है ये यूथ के लिए बहुत ही उपयुक्त है क्योंकि हर यूथ इस समय अपने करियर को लेकर चिनितत है और कुछ न कुछ बनना चाहता है, जीवन में अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहता है। इस सिथति में उनके लिए करियर काउन्सलिंग व कोचिंग को समझना बहुत ही जरूरी हो जाता है। इसके लिए सबसे पहले तो हमें काउन्सलिंग व कोचिंग का सही अर्थ जानना होगा। क्योंकि अधिकांषत: हम इन दोनों ही शब्दों को एक-दूसरे की जगह बदल देते हैं तो यहाँ मैं स्पष्ट कर दूं काउन्सलिंग एक बहुत ही छोटी प्रक्रिया है वरन कोचिंग काउन्सलिंग की तुलना में लम्बा मार्ग है।
काउन्सलिंग के बारे में यह कहा जा सकता है कि यह 15 मिनट, ) घंटा या अधिक से अधिक 1 घंटे की गतिविधि है। इसी आधार पर कहा जा सकता है कि ये बहुत ही छोटी प्रक्रिया है। इसके विपरीत कोचिंग एक लम्बी गतिविधि है या यूँ कहिए एक लम्बी तकनीकी व अधिक समय लेने वाली प्रक्रिया है। पर चूँकि बात आपके करियर की है तो ये किसी भी यूथ के लिए इतना महत्वपूर्ण है कि इसमें समय तो अधिक लिया ही जा सकता है जिसके द्वारा ही अपने भविष्य की रूपरेखा बना सकते हैं।
प्र.2 करियर काउन्सलिंग व कोचिंग देानों में से अधिक महत्वपूर्ण कौन है ?
उत्तर :
इसे समझने के लिए हमें सबसे पहले अपने करियर को समझना पड़ेगा क्योंकि करियर किसी भी विधार्थी के लिए बहुत अहम होता है क्योंकि करियर के आधार पर ही यूथ अपनी आगे की तीस, चालीस, पचास साल व पूरा जीवन निषिचत करते हैं। तो यह एक बहुत ही लम्बी प्रक्रिया है। और ये कोर्इ छोटी नहीं वरन बहुत ही लम्बी और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। क्योंकि किसी भी यूथ के करियर इतना महत्वपूर्ण है कि जिस पर उसका भविष्य निर्भर करता है और यह निर्णय पूरे जीवन में सिर्फ एक बार ही लिया जाता है तो मेरा मानना है कि इस निर्णय को बहुत ही सोच समझ कर लिया जाना चाहिए। अन्यथा उनके भविष्य पर इसके नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं।
प्र.3 आपने बताया कि करियर कोचिंग बहुत ही लम्बी प्रक्रिया है तो इस प्रक्रिया में कोर्इ एक कोच हमें भविष्य के सम्बन्ध में मार्गदर्शन देते हैं या एक से अधिक कोच हमें सलाह देने के लिये उपलब्ध होते हैं?
उत्तर :
यह बहुत ही रूचिकर बिन्दू है क्योंकि कोच जो हैं वो हमारे आस-पास ही मौजूद होते हैं लेकिन उन्हें पहचान नहीं पाते हैं और मैंने यह महसूस किया है जीवन में एक व्यकित के चारों ओर उसका कोच हर वक्त उपसिथत होता है लेकिन वो उसे देख नहीं पाता । चाहे बात करें हम किसी भी महान शखिसयत जैसे कि हमारे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम साहब उनके पास भी यही चोर कोच थे जिन्होंने उन्हें सही मार्गदर्षन दिया और जिनकी वजह से ही वो आज इस मुकाम तक पहुंचे। ठीक उसी तरह हर यूथ के जीवन में यही चारों कोच मौजूद होते हैं।


आज मैं आपको बाताऊंगा कि ये चार कोच कौन-2 से हैं –
कोच नं. 1 – एक व्यकित खुद अपना सबसे बड़ा कोच होता है।
कोच नं. 2 – व्यकित के माता-पिता भी उसके लिए कोच की ही भांति ही होते हैं। क्योंकि बचपन में भी उन्हीं की अंगुली पकड़ कर वो जीवन में चलना सीखते हैं
कोच नं. 3 – हर व्यकित के षिक्षक भी उसके कोच ही हैं क्योंकि हम जीवन में उनके बिना भी आगे नहीं बढ़ पाते।
कोच नं. 4 – किसी भी व्यकित के मित्र भी उसके कोच के समान ही हैं।

तो ये हैं वो चार कोच जो हमेषा व्यकित के साथ होते हैं और अगर इन चारों को सही तरह से सदुपयोग किया जाये और उनकी बराबर मदद ली जाये तो मुझे लगता है हम हर समस्या का समाधान ढूंढ सकते हैं और अपनी रूचि, मेहनत व लगन द्वारा अपना सही करियर विकल्प भी चुन सकते हैं।
प्र.4 जब विधार्थी भ्रमित होते हैं तो सलाह मांगने काउन्सलर के पास जाते हैं लेकिन जब विधार्थी खुद ही कोच हैं तो भ्रम क्यों?
उत्तर :
देखिये भ्रम वहां उत्पन्न होता है जहां पर स्पष्टता तथा निषिचतता नहीं होती है इसके लिए विधार्थियों को स्वयं ही अपने जुनून व रूचि को तलाष करना पडे़गा। इस तलाषी में निषिचत रूप से दूसरे लोग उनकी मदद करते हैं। और सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि एक विधार्थी को यह मालूम ही नहीं होता कि कितने करियर विकल्प उनके पास उपलब्ध हैं । सबसे पहले तो वो खुद उस पर काम कर सकता है। फिर मदद ले सकता है अपने माता-पिता की जो उससे कुछ कोर्सेस के बारे में जानकारी देंगे। इसके बाद फिर वो मदद ले सकता है अपने षिक्षकों की जो करियर से संबंधित कुछ नर्इ बातों पर प्रकाष डालेंगे। इसके बाद फिर बारी आयेगी उसके मित्रों की। तो इस तरह से वो एक लम्बी सूची तैयार कर सकता है। इसके बाद वो इसे विस्तृत रूप से स्पष्ट कर सकता है। इस तरह से ये प्रथम सीढ़ी होगी जिनमें अप्रत्यक्ष रूप से ये सभी लोग उसकी मदद करेंगे। उसके बाद धीरे-धीरे ये सब छोटे समूहों में वर्गीकृत किये जाते हैं। और सभी के विकल्पों को मिलाकर लगभग 40-50 विकल्प विधार्थी के समक्ष उपलब्ध हो जाते हैं जिनको सबसे पहले पहचाना जाता है फिर उनका मूल्यांकन किया जाता है। इसके बाद व्यावसायिक विषेषज्ञों को ढूंढा जाता है और जब यूथ उन्हें देखेगा, उनकी जीवन शैली से परिचित होगा और उनसे जाकर मिलेगा, उनसे बात करेगा तो करियर संबंधी जितने भी भ्रम उसके मसितष्क में चल रहे हैं तो उन सभी सवालों के जवाब उसे मिल जाते हैं।
प्र.5 एक संदेह हमेषा विधार्थियों के मन में रहता है कि उन्हें कौनसा विकल्प चयन करना चाहिए और वरन पूरी प्रक्रिया में अपने कौशल को व खुद को पहचानना भी उतना ही महत्वपूर्ण है लेकिन खुद के कौषल को लेकर ही यूथ में जो संदेह उन्हें वे कैसे दूर करें?
उत्तर :
मुझे लगता है कि सबसे पहले विधार्थी ये मालूम कर लेना चाहिए कि उसके पास विभिन्न कौन-कौन से विकल्प उपलब्ध हैं। उसके बाद उसे उन सब लोगों से मिलना पड़ेगा जो उसके विकल्प से सम्बन्ध रखते हैं। मान लीजिए कि आप इंजीनियर बनना चाहते हैं सबसे पहले आपको इस क्षेत्र का चयन कर उन सभी इंजीनियरों से व्यकितगत रूप से मिलना पडे़गा। इसी प्रकार यदि आप प्रषासनिक सेवा में जाना चाहते हैं तो आप उन सभी प्रषासनिक अधिकारियों की जीवन शैली को भी देखना पसंद करेंगे और आप व्यकितगत रूप से यह अनुभव करना चाहेंगे कि मैं यहाँ आरामदायक अनुभव कर रहा हूँ नहीं या नहीं, ठीक इसी प्रकार कोर्इ पत्राचार की लाइन में जाना चाहता है तो उसे स्टूडियो जाकर वहां के माहौल से परिचित होना पडे़गा क्योंकि व्यकित को अपनी रूचि का अनुमान तो खुद ही लगाना पड़ता है। हर व्यकित खूबसूरत व अलग तरह का है। यदि हमें भी जीवन में अवसर प्राप्त हों तो हम अपनी रूचि अनुसार सही विकल्प का चयन कर सकते हैं। इसी प्रकार 40-50 तरह के विकल्प जब हम ढूंढते हैं तो उनके बारे में सभी महत्वपूर्ण जानकारी अर्जित कर लेते हैं तब हम अपने माता-पिता व षिक्षकों की सहायता ले सकते हैं फिर हमारे लिए जरूरी है हमारे करियर विकल्प से संबंधित व्यकितयों से मिलें तथा उस वातावरण के बारे में जान लें। तो इस प्रक्रिया को अगर व्यवसिथत ढंग से पूरा किया जायेगा तो यूथ अपनी सिथति को पहचान पायेंगे और अपनी सभी शंकाओं का समाधान उनके पास होगा और आप स्वयं संतुषिट का अनुभव करेंगे।
प्र.6 जैसे कि आपने बताया कि करियर कोचिंग एक लम्बी प्रक्रिया है तो इसे न्यूनतम किस आयु से शुरू कर दिया जाना चाहिए कि हम समय रहते श्रेष्ठ निर्णय ले सकें?
उत्तर :
देखिये किसी ने खूब कहा है कि जब जागो तभी सवेरा आपको जब से यह प्रक्रिया समझ में आ जाये तभी इसकी षुरूआत कर देनी चाहिए। और पूरे उत्साह से इस कार्य में लग जाना चाहिए। क्योंकि एक तरह से देखा जाये तो ये एक छोटे अनुसंधान कार्य की भांति ही है। जिसमें आपको खुद पहले करनी होती है। कुछ चीजें अपने करियर से संबंधित पता लगानी होती हैं। स्वयं को पहचानना होता है। आपको स्वयं ही लोगों से जाकर मिलना होता है और करियर से संबंधित सूची भी आपको स्वयं ही तैयार करनी पड़ती है। या यूँ कहिए कि यह एक विधावाचस्पति कार्य की भांति ही एक छोटा अनुसंधान कार्य है। और यूथ को अपनी रूचि का पता लगाना है। क्योंकि मुझे समाज में सबसे बड़ी समस्या से अनुभव होती है, अधिकांषत: 60 से 70 प्रतिषत लोग वो काम करते हैं, जो वो नहीं करना चाहते थे। इसी कारण वो लोग काम करते-2 भी निराषा का अनुभव करते हैं तथा दूसरों से र्इष्र्या करने लगते हैं। और अपने काम में आनन्द की अनुभूति नहीं कर पाते। समाज में लोगों की यह धारणा है कि अगर वे सरकारी नौकरी में जायेंगे तो अधिक सफल बन जायेंगे। पर हकीकत ये है कि किसी भी नौकरी को करने से व्यकित सफल नहीं बनता बलिक उसे खुषी से करने से सफल बनता है। इसीलिये अपनी रूचि व षौक को पहचानना युवाओं की आज की सबसे बड़ी जरूरत है। और यहीं हम लोग गलती कर रहे हैं। और इसका महत्व नहीं समझ पा रहे हैं। दूसरों के कहने पर अपने जीवन के निर्णय ले रहे हैं। और हम दूसरों के बल पर ही सुरक्षित होना चाहते हैं। सबसे पहले इसीलिये हमें खुद का जानना व पहचानना होगा तभी हम अपने जीवन से संबंधित सही निर्णय ले पायेंगे।
प्र.7 करियर कोचिंग प्रक्रिया की षुरुआत कहाँ से व कैसे होनी चाहिए? कैसे यूथ अपने कोच को पहचाने, अपने कौषल को पहचाने? तथा इसके लिए कौनसी प्रक्रिया अपनाये ?
उत्तर :
मुझे लगता है कि 9 व 10 की आयु कोचिंग प्रक्रिया की शुरुआत के उपयुक्त है। क्योंकि 11 में उन्हें 3 या 4 विकल्प में से एक का चयन करना पड़ता है। इसीलिये 11 से पहले दो साल पूरा उपयुक्त तरीके से इस पर काम कर लिया जाये तो उन्हें अपने लिये सही व उचित विकल्प का ज्ञान हो जाता है। विधार्थी उनके बारे में पूरी सूचनाएँ आसानी से एकत्रित कर सकते हैं। देखा जाये आज हर क्षेत्र में इतने विकल्प हैं जैसे – इंजीनियरिंग में, पत्राचार में, वाणिज्य में, प्रबन्ध में, मेडिकल में जहाँ देखिये वहाँ इतने विकल्प फैले हुए हैं कि अगर इनकी एक सूची तैयार की जाये तो हम पायेंगे कि इनकी संख्या 400 से भी ज्यादा है। और इन विकल्पों को जानना तथा इन पर काम करना ये पूरे दो साल की गतिविधि है। इसीलिये मैं सोचता हूँ कि अगर विधार्थियों द्वारा 9 व 10 में ही ये काम षुरु कर दिया जाये तो उनके भविष्य के लिए यह बहुत ही अच्छा है। और अगर अज्ञानतावष विधार्थी 9 व 10 में ना शुरू कर पाये तो 11 की आयु में भी उनके लिए देर नहीं हुर्इ है। बस देर है उनके बारे में जानने की और उन्हें पहचानने की, वैसे भी देखा होगा आपने कि लोग अपने करियर में परिवर्तन लाते ही रहते हैं। और 3-4 सफल बाद वापिस उस सिथति में आ जाते हैं जहाँ से उन्होंने शुरूआत की थी।
इसीलिये दिखावे में ना रहे कि उसने ये काम किया है तो मैं भी ये कर लूं। अपनी पसन्द व अपने जुनून को पहचाने व उसी अनुसार विकल्प चुनें। मुझे पूर्ण विष्वास है कि कामयाबी आपके कदम चूमती नजर आयेगी।

धन्यवाद !!!

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