स्वार्थ, स्वार्थ, स्वार्थ चारों तरफ स्वार्थपरक दुनिया बनती जा रही है। जिसको देखो येन केन प्रकारेण सबको पैसा चाहिए, प्यार चाहिए लेकिन सिर्फ अपने लिये, दूसरों को देने के लिये उनके पास न प्यार है न पैसा। स्वार्थ की धुन में कुछ लोग इतने डूब जाते हैं कि उन्हें सही-गलत का फर्क ही पता नहीं रहता। यह लोग गलत तरीकों का इस्तेमाल करके देश की जनता का पैसा लूटते हैं, जैसे कि नीरव मोदी। इनकी कंपनी ने पंजाब नेशनल बैंक के साथ धोखाधड़ी करके 11,300 करोड़ रुपए का घोटाला किया है। जिसके लिए बैंक के कर्मचारियों की मिलीभगत से गलत तरीके से लेटर ऑफ अंडरटेकिंग को दिखाकर आयात के नाम पर पैसा लिया गया। लेटर ऑफ अंडरटेकिंग एक प्रकार की गारंटी होती है जो जारी करने वाला बैंक अपने ग्राहक के लिए लेता है जिसको आधार मानकर दूसरा बैंक ग्राहक को पैसे दे सकता है।
वहीं स्वार्थपूर्ण प्रेम का एक दुखद वाकया अभी जयपुर में देखने को मिला जिसमें वेलेंटाइन डे पर निकाह नहीं करने पर एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका पर तेजाब डाल दिया। यह कैसा प्रेम है जहां सिर्फ पाने की ललक है? लगता है ये समाज किस दिशा जा रहा है?
आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या ऐसे समाज में हमारी आने वाली पीढिय़ा रह पाएंगी? लोग क्यों सिर्फ अपना ही भला चाहते हैं चाहे उसके लिए उन्हें कोई गलत काम ही क्यों न करना पड़ जाए। बहुत गहराई से सोचने पर हमने जाना कि इन सारे सवालों का जवाब श्रीमद्भभगवद गीता में दिया गया है। इंसान शरीर रुपी रथ से चलता है और इस स्थूल शरीर रथ को चलाती हैं हमारी इंद्रियं जो रथ के घोड़े समान है और इन इंद्रियों को चलाता है हमारा ‘मन’ जो इन सारी समस्याओं का कारण भी है। इसलिए कहा भी गया है मन के मते न चलिये मन के मत अनेक। इंसान का मन ‘मोह’ के कारण राग द्वेष में फंसा रहता है। मन हमेशा स्वयं पर केंद्रित रहता है, यह हमेशा अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए इंद्रियों को अपने प्रिय विषयों की ओर खींचता रहता है।
आज समाज में धर्म की समझ खत्म होती जा रही है, शायद क्योंकि अब धर्मपरक शिक्षा व्यवस्था नहीं रही, और परिवार के सदस्यों को छोटे बच्चों को धर्म का अर्थ समझाने का समय नहीं मिल रहा है। कारण जो भी हो लेकिन आज समाज से धर्म का हृास होता जा रहा है और यह एक स्वार्थपरक समाज बनता जा रहा है जहां लोगों को जो पसंद है बस वो चाहिए चाहे उसके लिए कुछ भी गलत रास्ता अपनाना पड़े।
इंसान को आज समझना होगा कि अपने हित से पहले हमें परिवार का हित देखना चाहिए और परिवार के हित से पहले गांव का हित देखना चाहिए और गांव के हित से पहले देश का हित। अगर हम ये जानना चाहते हैं कि हमारा कोई भी कर्म धर्म के अनुसार है या नहीं तो हमें यह देखना होगा कि वह समाज हित में है या नहीं। वेदों ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का सूत्र वाक्य कई हजार साल पहले दे दिया था जिसका भाव था सारी पृथ्वी को अपने परिवार की तरह मान कर चलो, हम सब एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
कुछ ही दिनों में होली आने वाली है हमने पहले भी कहा है कि बुराई, भ्रष्टाचार और बेईमानी की होली जलनी चाहिए, तो आइये इस बार ”स्वार्थ’ की होली जलाएं।
इसी के साथ आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
प्रेम, स्नेह व सम्मान के साथ…
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angela says:
grate thought