मोक्ष सन्यास योग (आनन्द व मोक्ष) पिछले अध्याय में हमने श्रद्धा के भाव को जाना। श्रद्धा के प्रकारों और श्रद्धा का शास्त्र, भोजन, यज्ञ, तप और दान संबंध को समझा। श्रद्धा का गहरा अर्थ है। इसके बाद किसी पर अविश्वास नहीं होता है। इस अवस्था के बाद मनुष्य मोक्ष को समझ जाता है। गीता के […]

देवासुर सम्पदा योग(मुक्ति) कहते हैं श्रीमद् भगवद् गीता भगवान की वाणी है। मात्र 45 मिनट मं भगवान कृष्ण ने सारा ज्ञान अर्जुन को दे दिया। जैसे-जैसे समय बीतता गया उसके साथ ही प्रबुद्ध व्यक्तियों द्वारा उसके संबंध मंे अलग-अलग व्याख्यायें की गई। आज जितने भी सम्प्रदाय हैं वे अपने शास्त्रों के संबंध में अलग-अलग व्याख्या […]

पुरूषोत्तमयोग (जीवात्मा) इंसान बहुत ही अद्भुत है, शक्तिशाली है उसकी सदैव ही स्वयं को जानने की इच्छा रही है। आज से लगभग 5,150 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान आपका आपसे परिचय करवाने में अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान देगा। कहा जाता है कि मात्र 45 मिनट में ही यह गूढ ज्ञान श्रीकृष्ण […]

क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग (परमात्मा) इस अध्याय में कुल चार बातें समझने योग्य है। पहली बात है-क्षेत्र से क्या आशय है? क्षेत्रज्ञ से क्या आशय है? ज्ञान किसे कहते हैं? ज्ञान कैसे आता है? परमात्मा कौन है? ईश्वर को तो हम तब समझेंगे, जब स्वयं को समझ जाएं। यदि आपने कभी गीता को पढा हो तो […]

भक्तियोग(समर्पण) श्रीमद् भगवद् गीता के पिछले अध्याय में हमने श्री हरि के विश्वरूप दर्शन की चर्चा की जो कि बहुत ही अद्भुत अनुभव रहा। इस अध्याय में अर्जुन में समता का भाव विकसित हुआ क्योंकि जब तक व्यक्ति सब कुछ स्वयं देख ना लें तब तक यह समभाव विकसित नहीं हो सकता। जब यह समता […]

राजविद्या राजगुह्मयोग (सकारात्मकता, विद्या व अविद्या) पिछले अध्याय में हमने यह जाना कि हमें सदैव ईश्वर का मन में चिंतन करना चाहिए तथा साथ ही कर्म लगातार किये जाए तो इंसान मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है एवं पुनर्जन्म। ये पुर्नजन्म की धारणा विज्ञान भी स्वीकार करता है। इस अध्याय में हम यह जानेंगे कि […]

अक्षर ब्रह्म योग (ऊँ जाप) हमने पिछले अध्याय में ज्ञान और विज्ञान को समझा। सदियां बीत गई और कितना समय गुजर गया लेकिन इंसान निरंतर खोज करता जा रहा है, ये खोज संबंधित है खुद से और ब्रह्माण्ड से लेकिन मुझे लगता है कि सबसे बडी खोज जो ऊर्जा की खोज है, ब्रह्म की खोज […]

Adhyay 18 we have discussed the five important aspects now we shall discuss the remaining six aspects. Hence we can say this chapter 18 can be divided into Eleven important divisions. So now in this concluding chapter, we shall discuss the following: “ Buddhi” or Understanding “Dheerta” or  Resilience “Sukh” or Happiness “Varna Vyavastha” or […]

This chapter is the final conclusion of Bhagwad Geeta, we can say just like the second chapter was its introduction or preamble so this concluding chapter is its review. This adhyay of Shrimad Bhagwad Geeta is the longest chapter comprising of 78 verses so we have divided it into two parts for convenience of understanding […]