विभूतियोग(श्रेष्ठता का भाव) पिछले अध्याय में हमने ’’श्रद्धा’’ के बारे में चर्चा की जिसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि ’’हे अर्जुन! यदि कोई दुराचारी मनुष्य भी मुझे पूरी श्रद्धा से भजता है तो मैं उसे ज्ञान प्रदान कर मुक्ति के मार्ग पर ले जाता हूं।’’ कुछ इस तरह की बात आज से लगभग 1500 […]

अक्षर ब्रह्म योग (ऊँ जाप) हमने पिछले अध्याय में ज्ञान और विज्ञान को समझा। सदियां बीत गई और कितना समय गुजर गया लेकिन इंसान निरंतर खोज करता जा रहा है, ये खोज संबंधित है खुद से और ब्रह्माण्ड से लेकिन मुझे लगता है कि सबसे बडी खोज जो ऊर्जा की खोज है, ब्रह्म की खोज […]

ज्ञान-विज्ञान योग (चेतना) पिछले अध्याय में हमने योगी बनने की प्रक्रिया को जाना और इस अध्याय में हम छह बिन्दुओं पर बात करेंगे। – ज्ञान और विज्ञान क्या है? – जड और चेतना क्या है? – त्रिगुण क्या है? – ईश्वर को कैसे पाया जाता है? – भक्त कौन है और कितनी तरह के होते […]

डॉक्टर और टीचर्स, अक्सर हमें क्यों डराते हैंघ् ये इसलिए डराते हैं क्योंकि आपकी श्रद्धा और विश्वास बहुत कमजोर है और जब भी आपका अपने में डर पैदा हो जाता है तो आपकी दूसरों मे श्रद्धा पैदा हो जाती है विश्वास बढ जाता है और इसी कारण अक्सर आपके अपने टीचर्स या डॉक्टर, आपकी अपनी […]

This chapter is the final conclusion of Bhagwad Geeta, we can say just like the second chapter was its introduction or preamble so this concluding chapter is its review. This adhyay of Shrimad Bhagwad Geeta is the longest chapter comprising of 78 verses so we have divided it into two parts for convenience of understanding […]

This chapter of Geeta throws light on the correct way of realizing the true- self. It gives a meticulous understanding of the correct way of meditation upon the Immortal Formless Spirit. This episode, therefore, leads us to deep spiritual insights enabling us to realize the Eternal within ourselves. It enlightens us on the following four […]

दूसरे के खाने को मैं खा जाऊँ, ये प्रकृति एक प्रकार की विकृति है। दूसरा अपना खाना खाएँ मैं अपना खाना खाऊँ ये प्रकृति है, लेकिन दूसरे ने खाना नहीं खाया इसी की फिक्र करना यही हमारी संस्कृति है। ‘‘दूसरों के भोजन की भी चिंता करना हमारी संस्कृति है।’’ Culture To cheat somebody of his […]

Arjuna is not just a mighty warrior but also a complete devotee of Shri Krishna, he shows all inquisitiveness laced with paramount humility while hearkening to Shri Krishna’s discourses. His keen interest in the learning’s has resulted in augmentation of satisfaction in Arjuna who was sailing in troubled waters at the beginning. In the voyage […]