भक्तियोग(समर्पण) श्रीमद् भगवद् गीता के पिछले अध्याय में हमने श्री हरि के विश्वरूप दर्शन की चर्चा की जो कि बहुत ही अद्भुत अनुभव रहा। इस अध्याय में अर्जुन में समता का भाव विकसित हुआ क्योंकि जब तक व्यक्ति सब कुछ स्वयं देख ना लें तब तक यह समभाव विकसित नहीं हो सकता। जब यह समता […]

In the previous adhyay, we witnessed the realization of God. We were enlightened by the “Viswaroop” of the all-pervasive supreme Lord Krishna. All mortal finite beings are a part of this supreme form and he pervades these entire universal beings. After witnessing the magnanimously enormous divine form of Lord Krishna, Arjuna stands astounded and bewildered. […]