ज्ञान का सर्वोच्च स्तर क्या है? प्रत्येक व्यक्ति को संसार का थोड़ा बहुत ज्ञान तो है परन्तु कोई भी जीवन की समस्याओं से पूर्णतः मुक्त नहीं हो पाता क्योंकि सर्वश्रेष्ठ ज्ञान की प्राप्ति अभी शेष है। ऐसा ज्ञान जो व्यक्ति को श्रेष्ठ व्यवसाय, रोजगार, और संतुष्टि प्रदान करता है, जो मानसिक चिड़चिड़ेपन (irritation) और ईर्ष्या (jealousy) को समाप्त करता है और जिससे भय, कमजोरी, लालच और लगाव समाप्त हो जाते हैं, यही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान है। यह ज्ञान सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य है, पूर्णतः सरल है और अत्यधिक प्रासंगिक है।
स्वयं की एक शरीर के रूप में नहीं, बल्कि एक आत्मा के रूप में पहचान करना ही सर्वाेच्च ज्ञान है। हम शरीर नहीं, बल्कि शरीर और आत्मा का संयोजन हैं। शरीर मस्तिष्क की पाँच संवेदनाओं द्वारा संचालित किया जाता है, जो बुद्धि द्वारा नियंत्रित की जाती हैं और हमारी बुद्धि हमारी आत्मा (चेतना) द्वारा नियंत्रित की जाती है।
मैं एक शक्तिषाली आत्मा हूँ। मैं एक ऊर्जा हूँ। यही ज्ञान का सर्वोच्च स्तर है। सर्वोच्च आत्मा ईष्वर है और मैं उसका एक भाग हूँ। यह ज्ञान यदि समझा जाए तो सभी समस्याओं का सरलता से समाधान हो पाएगा। ऊर्जा न तो कभी उत्पन्न की जा सकती है न कभी नष्ट की जा सकती है। ब्रह्माण्ड में सभी कुछ ऊर्जा ही है। हम सभी सर्वश्रेष्ठ ऊर्जा के अंश है। जिसे ‘ईष्वर‘ नाम दिया गया है। संपूर्ण ब्रह्माण्ड इसी सर्वश्रेष्ठ ऊर्जा द्वारा संचालित किया जाता है।
जिस क्षण आप समझ पाते हैं कि ‘‘आप एक शक्तिषाली आत्मा हैं’’, आप कभी भयग्रस्त नहीं होंगें, लालच का अनुभव नहीं करेंगें तथा ईर्ष्या कभी नहीं करेंगें। आप संसार की प्रत्येक वस्तु को एक शक्तिषाली आत्मा के रूप में देखते हुए कोई भेदभाव और ईर्ष्या का भाव नहीं रखेंगे। अपना धैर्य सरलता से नहीं खोएंगे। यदि आप यह ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं तो आप अपने मस्तिष्क, संवेदनाओं और अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख पाएंगे, आप प्रतिक्रिया देने की अपेक्षा बुद्धिमानी के साथ कार्य कर पाएंगें। सभी ईष्वर की संतान है। आप अनुभव करेंगें कि सभी आपसे कहीं न कहीं और किसी न किसी रूप में संबधित हैं और हम सभी एक बड़े परिवार का अंग है।
‘‘मैं ईष्वर का एक अनिवार्य अंग हूँ’’ यह विचार कर आप असीम प्रसन्नता और एक सर्वोच्च शक्तिषाली स्त्रोत से जुड़ेगें। यही सर्वोच्च ज्ञान है जो स्वानुभूति लाता है, और ईष्वरानुभूति की ओर ले जाता है।
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angela says:
motivational thought