Share this on WhatsApp पुरूषोत्तमयोग (जीवात्मा) इंसान बहुत ही अद्भुत है, शक्तिशाली है उसकी सदैव ही स्वयं को जानने की इच्छा रही है। आज से लगभग 5,150 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान आपका आपसे परिचय करवाने में अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान देगा। कहा जाता है कि मात्र 45 मिनट में ही […]
गुणत्रय विभाग योग | अध्याय 14|श्रीमद्भगवद्गीता – संजय की नजर से
Share this on WhatsAppगुणत्रय विभाग योग (त्रिगुण) सदियों से इंसान की खोज रही है, खुद को जानने की, खुद को समझने की, खुद को खोजने की सुख व शान्ति में फर्क करने की, इंसान इस खोज में बाईबिल की तरफ बढा, कभी कुरान की तरफ बढा, कभी गुरूग्रन्थ साहिब की ओर बढा, लेकिन सभी जगह […]
क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग | अध्याय 13|श्रीमद्भगवद्गीता – संजय की नजर से
Share this on WhatsAppक्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग (परमात्मा) इस अध्याय में कुल चार बातें समझने योग्य है। पहली बात है-क्षेत्र से क्या आशय है? क्षेत्रज्ञ से क्या आशय है? ज्ञान किसे कहते हैं? ज्ञान कैसे आता है? परमात्मा कौन है? ईश्वर को तो हम तब समझेंगे, जब स्वयं को समझ जाएं। यदि आपने कभी गीता को […]
भक्तियोग | अध्याय 12 |श्रीमद्भगवद्गीता – संजय की नजर से
Share this on WhatsApp भक्तियोग(समर्पण) श्रीमद् भगवद् गीता के पिछले अध्याय में हमने श्री हरि के विश्वरूप दर्शन की चर्चा की जो कि बहुत ही अद्भुत अनुभव रहा। इस अध्याय में अर्जुन में समता का भाव विकसित हुआ क्योंकि जब तक व्यक्ति सब कुछ स्वयं देख ना लें तब तक यह समभाव विकसित नहीं हो […]
एकादश अध्याय: विश्वरूप दर्शन योग |श्रीमद्भगवद्गीता (संजय की नजर से)
Share this on WhatsApp विश्वरूप दर्शन योग (कृष्ण दर्शन) आज जिस अध्याय की हम चर्चा करेंगे यह तो वह अध्याय है जिसे इंसान पढते-पढते थकता ही नहीं है, परंतु यह तब संभव है जब उसके मन में भक्ति आ गई हो। जब हमने 10 अध्यायों को समझ लिया हो, तब ये ग्यारहवां अध्याय इतना रूचिकर […]
दशम अध्याय : विभूतियोग (संजय की नजर से)
Share this on WhatsApp विभूतियोग(श्रेष्ठता का भाव) पिछले अध्याय में हमने ’’श्रद्धा’’ के बारे में चर्चा की जिसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि ’’हे अर्जुन! यदि कोई दुराचारी मनुष्य भी मुझे पूरी श्रद्धा से भजता है तो मैं उसे ज्ञान प्रदान कर मुक्ति के मार्ग पर ले जाता हूं।’’ कुछ इस तरह की बात […]
नवम अध्याय : राजविद्या राजगुह्मयोग (संजय की नजर से)
Share this on WhatsApp राजविद्या राजगुह्मयोग (सकारात्मकता, विद्या व अविद्या) पिछले अध्याय में हमने यह जाना कि हमें सदैव ईश्वर का मन में चिंतन करना चाहिए तथा साथ ही कर्म लगातार किये जाए तो इंसान मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है एवं पुनर्जन्म। ये पुर्नजन्म की धारणा विज्ञान भी स्वीकार करता है। इस अध्याय में […]
आठवाँ अध्याय : अक्षरब्रह्मयोग श्रीमद्भगवद्गीता (संजय की नजर से)
Share this on WhatsApp अक्षर ब्रह्म योग (ऊँ जाप) हमने पिछले अध्याय में ज्ञान और विज्ञान को समझा। सदियां बीत गई और कितना समय गुजर गया लेकिन इंसान निरंतर खोज करता जा रहा है, ये खोज संबंधित है खुद से और ब्रह्माण्ड से लेकिन मुझे लगता है कि सबसे बडी खोज जो ऊर्जा की खोज […]
सप्तम अध्यायः ज्ञान-विज्ञान योग – श्रीमद्भगवद्गीता (संजय की नजर से)
Share this on WhatsApp ज्ञान-विज्ञान योग (चेतना) पिछले अध्याय में हमने योगी बनने की प्रक्रिया को जाना और इस अध्याय में हम छह बिन्दुओं पर बात करेंगे। – ज्ञान और विज्ञान क्या है? – जड और चेतना क्या है? – त्रिगुण क्या है? – ईश्वर को कैसे पाया जाता है? – भक्त कौन है और […]
आज का विचार-‘‘श्रद्धा और डर’’
Share this on WhatsAppडॉक्टर और टीचर्स, अक्सर हमें क्यों डराते हैंघ् ये इसलिए डराते हैं क्योंकि आपकी श्रद्धा और विश्वास बहुत कमजोर है और जब भी आपका अपने में डर पैदा हो जाता है तो आपकी दूसरों मे श्रद्धा पैदा हो जाती है विश्वास बढ जाता है और इसी कारण अक्सर आपके अपने टीचर्स या […]