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‘‘संसार में तीन गुण शाश्वत है- सत्त्व, रजस और तमस। व्यक्ति को अपने स्वभाव में दोनों प्रकृतियों – रजस और तमस के बीच में सन्तुलन बनाना चाहिए और सत्त्व का गुण विकसित करना चाहिए।‘‘
विश्व में तीन गुण शाश्वत है- सत्त्व, रजस और तमस। सत्त्व गुण अच्छाई, विकास और सन्तुलन एवं तालमेल का दर्शाता है। सत्त्व गुण अत्यधिक सक्रियता, शंका, भ्रम (confusion) एवं क्रोध को दर्शाता है। जब कि तमस अन्धकार, विनाश और विध्वंस की स्थिति की ओर इंगित करता है। यह सभी गुण हर व्यक्ति में मौजूद है। इन गुणों के आधार पर ही कोई व्यक्ति अपने जीवनकाल में उन्नति कर सकता है या अवनति की ओर जा सकता है। मानव व्यवहार सम्बन्धी अध्ययन में यह पाया गया है कि गुण से आशय व्यक्ति का व्यक्तित्व उसका आन्तरिक व्यवहार और मनोवैज्ञानिक पहलुओं से है।
हममें से कई लोग ऐसे है जो कि अपने आसपास होने वाली घटनाओं के प्रति सजग (aware) नहीं रहते और ना ही उस सजगता के साथ जीते है। हममें से कई लोग अनुभवी इंजीनियर, डॉक्टर, टीचर आदि है परन्तु उस सजगता (awareness) की कमी है। आवश्यकता है कि हम इसका विकास करें। जो कि एक अच्छे आचरण की कंूजी है। हममें से कई लोग आलस्य के शिकार है क्योंकि हम कठोर परिश्रम नहीं करना चाहते है। अत्यधिक निद्रा भी आलस्य (laziness) को जन्म देती है। इसी कारण हम परीक्षा के दिनों में अच्छी तैयारी नहीं कर पाते है और तनाव (depression) एवं चिन्ता (tension) से ग्रस्त हो जाते है। और हममें तमस गुण पनपने लगता है। कभी -कभी हमें इतने अधिक उत्तेजित (excited) हो जाते है कि हमारी वाणी और शरीर पर नियन्त्रण ही नहीं रहता है। ऐसा रजस गुण के अधिक होने से होता है।
अतः आवश्यकता है कि व्यक्ति को अपने स्वभाव में दो प्रकृतियों (रजस व तमस) के बीच में सन्तुलन बनाना चाहिए और सत्त्व का गुण विकसित करना चाहिए। इसके लिए हम ॐ मन्त्र का उच्चारण करे और अपने मन-मस्तिष्क में उस ऊर्जा का संचार करें जिससे हम अपने जीवन में असीम सफलता और अपार खुशी का आनन्द ले सके।

 प्रो. संजय बियानी

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