कहते है कि एक ओर जीवन कठोर तपस्या है वही दूसरी ओर जीवन सुख-सुविधाओं से भरपूर है । आवश्यकता है कि दोनों पक्षों के बीच सन्तुलन कैसे लाए ? मध्यम मार्ग क्या है ?
आज का जीवन 21वीं सदी के उन सभी ऐशो-आराम ;comforts एवं सुख सुविधाओं से युक्त है जिसमें बाहरी दुनिया की कठिनाइयों का एहसास नहीं होता । हम जीवन को कम्फर्टेबल बनाने में ही लगे रहते है। हम अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आना ही नहीं चाहते। हम यह भी पता नहीं लगाते कि हम हमारी वास्तविक जिन्दगी से कितने अछूते हो रहे है। अगर हम इस तथ्य को भगवान बुद्ध के जीवन से जोड़े तो वह हमारे लिए एक प्रेरणा बन सकती है।
यह बात है करीब 2500 वर्ष पहले की। गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल में लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ। उनके पिता का नाम शुद्धोधन व माता का नाम मायादेवी था। बचपन में उनका नाम सिद्धार्थ था। बहुत से साधु-संतों ने यह भविष्यवाणी की कि यह बालक बड़ा होकर या तो चक्रवती सम्राट बनेगा या फिर कोई बड़ा संन्यासी बनेगा जो एक नए धर्म की रचना करेंगा। उनके पिता ने उन्हें राजमहलों के भीतर ही रखा और वे सारी सुख-सुविधाएं दी ताकि उन्हें बाहरी दुनिया का असली स्वरूप का पता न चल सके। जीवन के यथार्थ (जन्म व मृत्यु ) से उन्हें दूर रखा गया। लेकिन शायद उन्हें पहले से ही भविष्यवाणी का आभास हो गया था। 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह रानी यशोधरा से कर दिया गया। वे राजमहल में राजसी जीवन जीने लगे। एक दिन जब वे महल से बाहर निकले तो राह में कुछ दूर उन्होंने एक बुढ़े आदमी को देखा जो कि दर्द से कराह रहा था। थोड़ी दूर आगे जाने पर उन्होंने एक अर्थी देखी जिसे देखकर उन्होंने जीवन के कड़वे सच मृत्यु को जाना। सर्वस्व राजमहल की सुविधाओं का त्याग करके वे सत्य की खोज में निकल गए। एक दिन उन्होंने वट वृक्ष के नीचे ध्यान की मुद्रा में ज्ञान का आभास किया और बौद्ध धर्म की खोज की । तब से वे भगवान बुद्ध कहलाए।
उनके जीवन का संदेश था कि हमें जीवन को सफल बनाने के लिए मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए। ना तो अत्यधिक कष्ट और संघर्ष युक्त जीवन हो और ना ही अत्यधिक सुख-सुविधाओं से भरपुर बल्कि इन दोनों के बीच संतुलन ;(balance) होना चाहिए जिसे उन्होंने मध्यम मार्ग ;(middle path) कहा। ज्ञान प्राप्त करके बुद्ध जब राजमहल वापस लौटे तो उनकी पत्नी यशोधरा का सवाल था कि 29 वर्ष की उम्र में राजमहल को त्यागने से और 35 वर्ष की उम्र में वापस लौटकर आने से जो ज्ञान साधना की प्राप्ति हुई क्या वह राजमहलों में नहीं हो सकती थी ? बुद्ध का जवाब था कि अगर हमें जीवन के वास्तविक ज्ञान का अनुभव करना है तो हमें अन्दर की ओर लौटना होगा।
हमें भी भगवान बुद्ध की तरह जीवन में कुछ उद्देश्य (Motive) रखना चाहिए। वास्तविक दुनिया से रूबरू होना चाहिए। कोई भी काम अच्छा या बुरा नहीं होता बल्कि उसको करने का तरीका ही उसे अच्छा या बुरा बनाता है। हमें उस काम को करने के लिए अन्दर से मजबूत होना चाहिए। जब हम बाहर निकलते है और बाहरी दुनिया को देखते है तो हमें व्यावहारिकता का पता चलता है । बुद्ध कभी भी ज्ञानी नहीं बनते अगर वे राजमहलों के अन्दर रहते। वे बुद्ध इसलिए बने क्योंकि उन्होंने बाहर की दुनिया को देखा, संघर्ष किया और एक नए धर्म की खोज की। परन्तु ज्ञान (knowledge) पाने के लिए कठोरता की जरूरत नहीं है। जरूरत है प्रेक्टिकल बनने की, अपने आप को बदलने की, काम को ज्ञानयुक्त करने की तथा वास्तविक जीवन में उतारने की तभी सही अर्थो में जीवन सफल हो सकेगा।
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manish agarwal says:
so energetic
kanchan says:
Awessm qouts sir