हमारे पास हर दिन कुछ नए मैनेजरियल थाॅट्स होने चाहिए। सुनना ही नहीं, सुनकर एनालाईज कर कुछ नया बोलने और शेयर करने का साहस भी होना चाहिए। कोई भी कमजोर नहीं होता, हम सभी के पास लगभग 50 ट्रिलयंस सेल्स और हर सेल्स (cells) 30 ट्रिलयंस डी.एन.ए. है। हम सभी के शरीर में हजारो-हजारों ट्रिलयंस एटमिक और सब एटमिक एटम्स है। प्रत्येक में काम करने की बहुत अधिक क्षमता है। हम कुछ भी करने की शक्ति रखते है। आप लोग जो अपनी तरफ से बेस्ट कर सकते है, करें। गल्र्स में कुछ करने की सबसे ज्यादा पाॅवर होती है। पाॅवर वह नहीं है जो फिजिकल है। पाॅवर वह है जो एटमिक लेवल पर है। एक पौराणिक कथा के अनुसार शुम्भ निशुम्भ नामक दानवों के अत्याचार से जब देवता आतंकित हो गए और माँ काली से प्रार्थना की। प्रार्थना से खुश होकर माँ काली ने राक्षसों का अंत किया। वो माँ काली इतनी पाॅवरफुल है। वो क्या चीज है जो उनमें है, हमारे में नहीं। क्या वो कैपेसिटी हममें नहीं ?क्या हम दीन-हीन दुखी है? क्या हम पापी है? बिल्कुल नहीं । हम सभी पाॅवरफुल है। हमारा कहना है कि आप में वह पाॅवर है जो दुर्गा में है।
तो क्यों नही अपनी पाॅवर व्यावहारिकता में दिखाई नहीं देती है। हम छोटी-छोटी चीजों के आगे हार क्यों जाते है ? कभी एग्जाम से, कभी पर्सन से, कभी डिजायर और लस्ट से हार जाते है। ये फेल्योर क्यों होती है हमारी लाईफ के अन्दर ? क्यों हम हार जाते है ? हमारे अन्दर पाॅवर होते हुए भी हमें दिखाई नहीं देती है। हम सोचे वो क्यों नहीं होता प्रैक्टिकल लाईफ में ? शायद, लेक आॅफ सेल्फ काॅन्फिडेंस । मुझे लगता है कि विवेकानन्द जैसी पाॅवर होनी चाहिए आपके पास। बोलना भी आना चाहिए। मैं आज फोकस कर रहा हूँ था वीमन पाॅवर को। क्यों वीमन अपनी पाॅवर को यूज नहीं कर पाती ? दुर्गारूपिणी होते हुए भी दुर्गा जैसी बन नहीं पाती। नकारात्मकता एक बड़ी समस्या है । ईष्या उससे भी बड़ी समस्या है। आपका जन्मदिन होने पर पिता से उपहार मिलने पर आपको खुशी होती हैै पर वैसा ही उपहार आपकी बहन को दिए जाने पर आपकी खुशी आधी हो जाती है। ऐसा ईष्या के कारण ही होता है। अगर डे-टू डे लाइफ में दूसरों की तारीफ और दूसरों की खुशियों में खुश होना सीख जाए तो ईष्या की समस्या खत्म हो जाएगी। जिससे हमारी छुपी हुई शक्तियां बाहर निकल पाएगी। हमें जो मिल रहा है उसमें खुश नहीं है। हम उस पर फोकस कर रहे है जो हमें नहीं मिल रहा, और इसी से हम खुश नहीं है। हमें ईष्र्या से बाहर निकलकर दूसरों को एप्रिशिएट करना होगा । जिस दिन लोगों की ईष्र्या करने की खत्म हो जाएगी, तो रियल पाॅवर एक्सप्लोर होने लगेगी। क्या मैं ठीक बोल रहा हॅू ? हममें से कितने लोग है जो दूसरों के जीतने पर कहते है – “they deserve” क्रिश्चयनटी में मैंने प्रेयर सिस्टम को देखा जिसमें लोग दूसरों की मदद की प्रार्थना करते है। यदि आप भी ऐसा करते है तो आप वाकई बधाई के पात्र है। ऐसा करने वाले बहुत आगे निकलेंगे।
दुर्गा हमारे अन्दर है। सुन्दरता हमारे अन्दर है। बाहर कुछ भी नहीं। ये दुर्गा इसलिए पाॅवरफुल थी क्योंकि उसने दूसरों के लिए काम किया। माँ की पाॅवर भी इसलिए ज्यादा होती है क्यों कि वह स्वंय के लिए नहीं बल्कि वह दूसरों के लिए काम करती है। अपनी शक्ति को पहचानिए। शुरूआत छोटे-छोटे कामों से करिए। कुछ अच्छे काम करिए। प्यासे को पानी, भूखे को भोजन दीजिए।
पेड़ो को पानी दीजिए। पक्षियों को नीड़ और पानी दीजिए। इन सभी आदतों को समर्पित भाव से कीजिए, और महसूस करिए कि ईश्वर इन सभी कामों को हमसें ही करवाना चाहता है। सफलता आपके सामने होगी।
Prof. Sanjay Biyani
Director (Acad.)
(Thoughts delivered in Assembly)
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babita says:
very good!!!!!!!!!!!!!!
pinky says:
nice thinking………………
pinky says:
awesome