इस एपिसोड जिसका नाम है ‘‘कर्मसंन्यासयोग‘‘ में कार्यक्रम के सूत्रधार डाॅ. संजय बियानी द्वारा बताया गया है कि हमारी ज्यादातर बीमारियाँ मानसिक है, जिसके लिए जरूरी है कि हम अपने मन और शरीर को जाने और जैसे हर बीमारी की कोई ना कोई दवा जरूर होती है वैसे ही हमारी समस्त मानसिक बीमारियों की भी दवा है, और वो है ‘‘श्रीमद्भगवद्गीता‘‘। गीता का यह पाँचवा अध्याय उन लोगों के लिए बहुत उपयोगी है जो शंाति की तरफ बढ़ना चाहते है। जो अंदरूनी तौर पर अशांत है और जिन्हें शंाति की तलाश है। इसमें उन्होंने श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच जो संवाद हुआ कि ज्ञान मार्ग एवं कर्म मार्ग के बीच कौनसा श्रेष्ठ मार्ग है, इसकी भी व्याख्या की है। इस अध्याय में योगी कौन है ? ब्रह्मविद् कौन है ? सुख और आनन्द में क्या अन्तर है ? अपनी एकाग्रता किस प्रकार बढ़ाए ? इन सभी की व्याख्या श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से बहुत ही सरल तरीके से की है। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से यह समझाया कि संसार में बार-बार आने का कारण सुख और इच्छाएँ ही तो है क्यों कि सुख की प्राप्ति इच्छाओं से होती है। यदि हम योगी बने तो हमें आनन्द मिलेगा और यह आनन्द ही हमें आगे ले जायेगा। इसमें डाॅ. संजय बियानी श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से हम सभी को ‘‘स्थितप्रज्ञ‘‘ होने को कहते है। जिससे हमारे जीवन में हमें परमानंद की प्राप्ति होती हैं । यदि आप कोई कार्य करना चाहते है और आपका उसमें मन नहीं लग रहा, आप एकाग्र नहीं हो पा रहे हंै तो यह एपिसोड आपकी मदद करेगा और आपको एक अद्भुत अहसास कराएगा।
YouTube Video Link:- श्रीमद भगवद् गीता | अध्याय 5 | Bhagwad Geeta Sanjay ki nazar se