श्रीमदभगवदगीता
(संजय की नजर से)
तीसरा अध्याय- कर्म योग
श्रीमद्भगवद्गीता का तीसरे अध्याय हमें अपने जीवन की कई समस्याओं का हल जानने में मदद करता है।
किसी काम को करने में हम सफल क्यों नहीं होते।
हमें उसे करने का तरीका मालूम नहीं होता। ये ऐसे प्रश्न है जो हमारे सामने आते हैं।
ऐसे ही प्रश्न आज से लगभग 5000 साल पूर्व अर्जुन को परेशान करते थे, जिसका उत्तर उन्हें श्रीकृष्ण से मिला। अर्जुन श्रीकृष्ण से कहते है कि मेरा कर्म क्या है मुझे युद्ध क्यों करना चाहिए। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उनका कर्म बताते हुए कहा कि जब हम किसी काम को आरंभ करते है तो हमें यह नहीं पता होता कि उस काम को करने का सही तरीका क्या है। किसी लक्ष्य को पाने के लिए उसका सही रास्ता मालूम होना आवश्यक है और सही रास्ते का चयन तभी किया जा सकता है जब हमारा स्वयं से परिचय होगा, यानि हमें अपनी शक्ति का अहसास होगा। श्रीकृष्ण कहते है कि कर्म करो किन्तु अनासक्ति के साथ अर्थात फल की इच्छा किए बगैर किया गया कर्म सदेव सफल होता है।
किसी काम करते समय हमारा मन विषय में फंस जाता है जिस कारण राग और द्वेष पैदा होता है। राग यानि लगाव और द्वेष यानि ईर्ष्या। और इन दोनों ही परिस्थितियों में निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है, जिसका सीधा असर हमारें लक्ष्य पर पड़ता है। अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछते है कि राग और द्वेष से कैसे बचा जा सकता है। तब श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते है कि जो काम अनास्क्त होकर किया जाए वहीं श्रेष्ठ है।
आज के परिप्रेक्ष्य में बात की जाए तो इस समय समाज की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार इसलिए है क्योंकि हमारें जनप्रतिनिधि स्वयं को समाज से बड़ा मान लेते है और अपना हित साधने के लिए जनता का नुकसान करते है। वहीं अगर हर जनप्रतिनिधि अपना कर्म अनासक्त भाव से करे तो स्वस्थ समाज का निर्माण किया जा सकता है।
Youtube Video link :- श्रीमद भगवद् गीता | अध्याय 3 | Bhagwad Geeta Sanjay ki nazar se
jagruti sharma says:
karma yog ka gyan ho jaye to sari problem hi khatam ho jaye. thanks for writing
samuel says:
woww thats so nice article. I luv Bhagwad geeta.