देवासुर सम्पदा योग(मुक्ति)
कहते हैं श्रीमद् भगवद् गीता भगवान की वाणी है। मात्र 45 मिनट मं भगवान कृष्ण ने सारा ज्ञान अर्जुन को दे दिया। जैसे-जैसे समय बीतता गया उसके साथ ही प्रबुद्ध व्यक्तियों द्वारा उसके संबंध मंे अलग-अलग व्याख्यायें की गई। आज जितने भी सम्प्रदाय हैं वे अपने शास्त्रों के संबंध में अलग-अलग व्याख्या करते हैं। उदाहरण के तौर पर ईसा मसीह ने इंसानियत का पाठ पढाया, लेकिन समय के साथ उस सम्प्रदाय के लागों ने उस पर अपने-अपने विचार रखे। यह जरूरी है कि जब भी किसी ग्रंथ का अध्ययन किया जाए तो उस पर विश्वास किया जाए। पिछले अध्याय में हमने पुरूषोत्तम योग का अध्ययन किया। हर पदार्थ नाशवान है अविनाशी है परंतु जिसका क्षय नहीं होता और वह है पुरूषोत्तम यानि ईश्वर अर्थात् कृष्ण। देव योनि भी भोगी योनि है जिसमें कर्म किये जाते हैं, बाकी योनियों में तो कर्मों का फल भी भोगा जाता है।
इस संसार की बात की जाए तो यहाँ दो ही प्रकार की सम्पदा के लोग पाये जाते हैं-दैवीय और आसुरी सम्पदा के लोग। इन्हीं के आधार पर पुनर्जन्म होता है। आइये चलते हैं इस यात्रा पर जिसमें हम इन दो सम्पदाओं के लोगों को जानेंगे। इस अध्याय में तीन बातों पर बात की गई है। दैवीय और आसुरी सम्पदा, नरक के द्वार, और कर्म में संशय होने पर किसका सहारा लिया जाये।
दैवीय सम्पदाः
ऐसी सम्पदा के लोग परम को प्राप्त करते हैं। ऐसी सम्पदा के लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस सम्प्रदाय के लोगों के कुछ गुण भी बताए गए हैं। वे गुण हैं-निर्भय, ज्ञानी, निर्मल मन, दान, इंद्रियों का दमन, देवता स्वरूप आचरण, उत्तम कर्मों का आचरण, मधुर व्यवहार, कीर्तन में मन, धर्म का पालन, कर्म को धर्म समझकर करना, मन, वाणी और शरीर से से किसी से कष्ट नहीं देते, क्रोध नहीं करते, स्वयं कर्त्ता होने का भाव नहीं होता, नियत कर्मों का निर्वहन करते हैं, अप्रिय वचन एवं अप्रिय सत्य नहीं बोलते हैं, दया, आसक्ति, कोमलता, सहृदय, लज्जा, धैर्य और क्षमा। अर्थात् यदि कोई दैवीय सम्पदा का व्यक्ति है तो उसमें ये गुण होंगे। यदि आपमें इनमें से अधिकतर गुण हैं तो आप भी दैवीय सम्पदा के प्राणी हैं, और इसका मतलब आप भी जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने वाले हैं।
आसुरी सम्पदाः
इस प्रकार के व्यक्ति जो लोग विनम्र नहीं होते, अहंकार का भाव होता है, इनमें अभिमान के कारण अज्ञानता आती है, बाह्य व भीतरी दोनों तरह से अशुद्ध होते हैं, फल की इच्छा के साथ कर्म करते हैं वे आसुरी सम्पदा के लोग होते हैं। इनके भी गुण गीता में बताए गए हैं। ये गुण हैं-अभिमान, क्रोध, ईश्वर को स्वीकार करना, भ्रष्टाचार। ऐसे गुणो के व्यक्ति पुनर्जन्म लेते हैं और नीच योनि में जन्म लेते हैं। ऐसे व्यक्ति कामनाओं पर आश्रित होते हैं।
मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि अपने पौराणिक ग्रंथों को पढें, श्रेष्ठ मार्ग पर चलें ताकि दैवीय सम्पदा को प्राप्त कर सकें। श्रीकृष्ण कहते हैं जो पुरूष अपने आपको ईश्वर समझ लेते हैं ऐसे आसुरी व्यक्ति बार-बार जन्म लेते हैं, अपने कर्मों को तीसरी बात जो कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं वह है नरक में जाने का मूल कारण है-जो व्यक्ति काम, क्रोध और लोभ करता है जो इन कामनाओं को रखता है ऐसा पुरूष नरक में जाता है।
कृष्ण कहते हैं कर्म में संशय की स्थिति में शराब को पढना चाहिए। शास्त्र की बात माननी चाहिए और शास्त्र संवत व्यवहार करना चाहिए। हम सभी देवत्व को प्राप्त करने के लिए बने हैं उसके लिए हमें क्रोध और लोभ से बचना चाहिए। इनसे बचने से देव सम्पदा की ओर कार्य बढने लगते हैं।
अगले अध्याय में हम श्रद्धा को समझेंगे, उसके प्रकार को जानेंगे और श्रद्धा का भोजन, तप और यज्ञ से क्या संबंध है, यह जानेंगे। इस भाग में बने रहने के लिए धन्यवाद!