Assembly Thoughts (3)
आज आपको यह बतायेगें कि हैल्दी कैसे रह सकते है ? डिटाॅक्सीफिकेशन क्या होता है ? हमारा सबसे पहला डिटाॅक्सीफिकेशन होता है, जब हम सुबह सबसे पहले toilet के लिए जाते है। तब हम हमारी body को केवल तीन प्रतिशत ही साफ कर पाते है। 7% डिटाॅक्सीफिकेशन यूरीन से होता है। 20% डिटाॅक्सीफिकेशन पसीने से होता है। पसीना जो आजकल हमें आता ही नहीं। पसीने से होने वाला 20ः डिटाॅक्सीफिकेशन लगभग बन्द हो गया है। इसके लिए हमें कभी-कभी भागकर चलना चाहिए, एक्सरसाइज करना चाहिए। पैदल चलना चाहिए ताकि थोड़ा पसीना आए। डिटाॅक्सीफिकेशन हो जाए। हम अक्सर लिफ्ट का प्रयोग करते है जब कि हम पैदल चढ़ सकते है। जापानी लोग सामान्यतः लिफ्ट का प्रयोग नहीं करते है। 95ः जापानी लिफ्ट होने के बावजूद सीढि़यों का ही प्रयोग करते हैं। काॅस्मेटिक के प्रयोग से भी शरीर में डिटाॅक्सीफिकेशन नहीं हो पाता है।
70% डिटाॅक्सीफिकेशन वायु से होता है। हमें रोज सुबह प्राणायाम करना चाहिए। बन्द कमरों में proper breathing नहीं हो पाती हैं। मशीनी और आरामदायक लाईफस्टाईल ने हमें सुविधाएं तो दी है और ज्वाईंट पेन व हाई ब्लडप्रेशर जैसी बीमारियां भी दी है। कुछ लोग एक्सरसाईज तो करते ही नही।
बियानी ग्रुप आॅफ काॅलेजेज के रिसर्च डाॅयरेक्टर प्रोफेसर मनीष बियानी द्वारा तैयार किट की टेस्टिंग के लिए गाँवों में गए तो हमने सोचा कि शहरों की माॅर्डन लाईफ के विपरीत वहां लोग ज्यादा बीमार मिलेगें। वे हुक्का पीते हैं। बीड़ी पीते है। इस सर्वे के परिणाम आश्चर्यजनक थे। गाँवों के लोग 95% अधिक स्वस्थ्य थे। शहरी लोगों का स्टैण्डर्ड आॅफ हैल्थ ज्यादा खराब था। तो क्या हम शहरों में रहना छोड़ दे? नहीं! नहीं! इसकी जरूरत नहीं। बाॅडी की केयर करे। यदि हमारा डिटाॅक्सीफिकेशन जो 7% यूरीन से, 3% स्टूल से, 20% पसीने से, व 70% वायु से होता है। वह प्राॅपर है तो हमारा शरीर स्वस्थ्य है।
डिटाॅक्सीफिकेशन की प्रक्रिया द्वारा हम नये पावरफुल सेल्स का निर्माण कर सकते है और हमारे विचारों से भी हम आॅक्सीनेट कर सकते है। यदि हमारी बाॅडी के सेल पाॅवरफुल है तो मेटाबाॅलिज्म की अच्छी कंडीशन है। जब आप खाना खाते है, दाँतों से अच्छे से चबाकर खाते है तो ये खाना लार की सहायता से हमारे पेट में पहुँचकर हमारी आँतों की सहायता से digest होता है। इस तरह मेटाबाॅलिज्म इम्प्रूव होता है और हम स्वस्थ्य रह पाते हैं।

Prof. Sanjay Biyani
Director (Acad.)
(Thoughts delivered in Assembly held on 29th March, 2016)

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