नई शिक्षा नीति 2019 –
हमने अपने पूर्व संपादकीय आलेख में इस बात को भली-भांति रेखांकित किया कि किस प्रकार शिक्षा व्यवस्था में तेजी से बदलते आज के वैश्विक परिदृश्य के हिसाब से मूलभूत बदलाव की आवश्यकता बहुत देर से महसूस की जा रही थी। वर्तमान शिक्षा नीति जो कि १९८६ में लागू हुई थी और जिसे १९९२ में संशोधित किया गया था, हमारे बच्चों को २१वीं सदी की चुनौतियों के लिए तैयार कर पाने में असक्षम सिद्ध हो रही थी।
नई शिक्षा नीति में जिसे इसरो के सेवानिवृत अध्यक्ष डॉ. कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में ड्राफ्ट किया गया है, दिए गए सुझावों को जिन दो मुख्य रूपों में बांटा गया है उनमें से प्रथम स्कूली शिक्षा पर हम पहले ही विस्तार से बात कर चुके हैं। आज हम इस नीति के दूसरे भाग, उच्च शिक्षा पर यहां कुछ महत्त्वपूर्ण बातों का उल्लेख करके इन्हें इंगित करना चाहेंगे।
नई शिक्षा नीति वर्तमान शिक्षा प्रणाली की कमियों को भली-भांति इंगित करते इन कमयों को पूरी तरह दूर करने का प्रयास करती दिखती है।
भारतीय उच्च शिक्षा व्यवस्था हेतु एक नई पहल व नई दृष्टि अपनाई गई है। उच्च शिक्षा संस्थानों में यद्यपि दाखिले का अनुपात २०११-१२ में २०.८ प्रतिशत से २१७-१८ में २५.८ प्रतिशत तक पहुंच गया है तथापि यह अनुपात विश्व स्तर का नहीं है जो कि ८७ प्रतिशत के करीब है। इसकी एक बड़ी वजह शिक्षा संस्थान अधिकतर शहरों में केन्द्रीकृत होकर रह गये हैं और ग्रामीण व दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले लाभार्थी शहर तक की दूरी पाट नहीं सकते।
मुख्य सिफारिशें: विभिन्न नियामक प्रणालियों का अंत करके एक राष्ट्रीयकृत उच्च शिक्षा नियमन अथॉरिटी को स्थापित करना। विभिन्न नियामक प्रणालियों के कारण कार्य की गति में अवरोध उत्पन्न होते हैं। एकल नियामक अथॉरिटी का घटन कार्य को सहज, सकारात्मक और गतिशील बनाने के अतिरिक्त पूर्ण रूप से सक्षम होने के कारण गुणवता को बढायेगा। इसमें इण्डस्ट्री और एकेडमिक दोनों क्षेत्रों से लोगों का चुनाव होगा और शैक्षणिक प्रणाली को व्यवसाय के साथ जोड़ा जायेगा जिससे रोजगार के काबिल विद्यार्थी उत्पन्न होंगे और इस तरह बेरोजगारी को और सरकारी रोजगार की निर्भरता को न्यूनतम किया जायेगा।
पुरानी संस्थाओं जैसे बार काउंसिल ऑफ इंडिया, एआईसीटीई का काम केवल पेशेवर गुणवत्ता का मानदण्ड स्थापित करना और इसको परखना होगा जबकि यूजीसी का काम उच्च शिक्षा संस्थानों को अनुदान प्रदान करने तक सीमित रहेगा। हृ्र्रष्ट एक स्वायत्त संस्थान के तौर पर काम करेगा और मान्यता का लाइसेंस प्रदान करने का काम देखेगा। उच्च संस्थानों की मान्यता पर हृ्र्रष्ट हर सात साल में एक बार विचार करेगा।
एनएचईआर अथॉरिटी केवल तीन प्रकार के उच्च शिक्षा संस्थान स्थापित करने की अनुमति देगा।
1. वो विश्वविद्यालय जो अनुसंधान और पढ़ाने में एक समान रूप से कार्य करेंगे।
2. वो विश्वविद्यालय जहां मुख्यता केवल पढ़ाने पर जोर दिया जायेगा।
3. वो कॉलेज जहां केवल स्नातक स्तर की पढ़ाई होगी।
ये सभी शिक्षा संस्थान धीरे-धीरे शिक्षण, प्रशासनिक एवं वित्तीय स्तर पर स्वचालित बनने की प्रक्रिया में अग्रसर होंगे।
अनुसंधान के क्षेत्र में भारत की स्थिति बहुत अच्छी नहीं मानी जाती है। हमारा योग जीडीपी में शिक्षा-अनुसंधान कार्य हेतु केवल ०.६९ प्रतिशत २०१४ में रहा जो कि बहुत न्यून है। इसके लिए राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन स्थापित करके सकल घरेलु योग का ६ प्रतिशत शिक्षा अनुसंधान में निवेश हेतु रखा जायेगा।
इसी प्रकार तकनीकी एवं तकनीकी आधारित शिक्षा के विकास पर बल दिया जायेगा और दूरस्थ क्षेत्रों तक इस प्रकार के शिक्षण केन्द्रों का विकास किया जायेगा। सारे शिक्षा संस्थानों में बिजली, पानी, शौचादि की पूर्ण व्यवस्था सुनिश्चित करना आवश्यक समझा गया है।
नेशनल एज्युकेशनल लैब, नेशनल एज्युकेशन टेक्नोलॉजी फोरम और देशव्यापी एनसीआरटी कोर्स करिकुलम तैयार किया जायेगा। प्रौढ़ शिक्षा, स्किल डवलपमेंट और अन्य प्रकार के शिक्षण संस्थानों का प्रारूप और स्वरूप तैयार आवश्यकतानुसार होगा।
मातृभाषा को प्राथमिकता देकर तीन भाषाओं का फार्मुला अमल में लाया जायेगा। भारतीय भाषाओं को प्रश्रय देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पाली, फारसी एवं प्राकृत के संस्थान स्थापित होंगे।
सस्नेह, प्रेम और सम्मान के साथ धन्यवाद…

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