अक्सर हम सभी लोग दो सवालों के जवाब ढूंढा करते हैं। मुझे लगता है ये सवाल बहुत महत्त्वपूर्ण है। पहला सवाल है- मैं कौन हूं? और दूसरा सवाल है- मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? जब इन दोनों सवालों का जवाब मिल जाता है, तो मन में शांति आती है, खुशियां आती हैं। हम सभी को जीवन में कई निर्णय लेने होते हैं और निर्णय लेना ही सबसे बड़ी ताकत है। एक सही निर्णय आपको जीवन में कहीं भी पहुंचा सकता है। निर्णय लेने की यह कला तब आती है, जब हमारे पास इन दोनों सवालों के जवाब होते हैं।
मुझे लगता है श्रीकृष्ण ऐसे हैं जिन्होंने अपने मनुष्य अवतार में सभी दु:खों को देखा। एक ऐसा इंसान, जिसका जन्म कैदखाने में होता है, एक ऐसा इंसान जो ग्वाले के रूप में अपना बचपन व्यतीत करता है, एक ऐसा इंसान जो अपने मामा से बहुत कम उम्र में ही युद्ध करना पड़ता है, एक ऐसा इंसान जो राजा बनता है और एक ऐसा इंसान जो ज्ञान की पराकाष्ठा तक पहुंचता है।
अगर आप अपने भीतर छिपी हुई प्रतिभा को सामने लाना चाहते हैं। जीवन में प्रबंधन करना चाहते हैं, एन्टरप्रेन्योर बनना चाहते हैं, एक सफल इंसान बनना चाहते हैं या अपने रिश्तों को बखूबी निभाना चाहते हैं तो श्रीमद् भगवद् गीता आपके लिये बहुत उपयोगी रहेगी।
श्रीमद् भगवद् गीता- अध्याय प्रथम (अर्जुन-विषाद योग)
अर्जुन को विषाद है, अर्जुन को दु:ख है। हमारे जीवन में भी दु:ख आता है, तभी ज्ञान आता है। वे सभी लोग कभी ज्ञानी नहीं बन पायेंगे जिनके जीवन में विषाद न हो। अर्जुन के विषाद के कारण ही उसे अद्भुत ज्ञान की प्राप्ति हुई। अगर आपके जीवन में दु:ख है, तो आपको प्रसन्न हो जाना चाहिये। क्यूंकि अब ज्ञान समझ आ जायेगा। ज्ञान है तो सबके पास लेकिन समझ कुछ ही लोगों को आता है।
शंखनाद के बीच… युद्ध का भयंकर दृश्य… हर तरफ बलशाली योद्धा… अर्जुन श्रीकृष्ण को कहते हैं, ‘कृष्ण, मुझे दोनों सेनाओं के बीच खड़ा करो, ताकि मैं सभी को देख सकूं।’ क्यूंकि कृष्ण आज सारथी हैं इसलिए कृष्ण इस बात को समझ कर रथ को दोनों सेनाओं के बीच लाकर खड़ा कर देते हैं। अर्जुन जैसे-जैसे चारों तरफ देखने लगते हैं, विषाद की तरफ बढऩे लगते हैं। भीष्म पितामह, जिनसे अर्जुन ने शिक्षा ली थी, आज वही अर्जुन के विपक्ष में उससे युद्ध करने के लिए खड़े हैं। द्रोणाचार्य, जो अर्जुन के शिक्षक रहे, आज उनके सामने तीर-कमान लेकर खड़े हैं। अर्जुन का अपना परिवार, उनके मामा, चाचा, पुत्र…उन्हें दिखाई देने लगते हैं और जैसे-जैसे वे यह दृश्य देख पाते हैं, विषाद में आते जाते हैं। यह विषाद जीवन को बहुत खराब कर देता है। अर्जुन निराशा में बढ़ते जा रहे हैं। ये सब देखकर अर्जुन फि र सवाल करते हैं,‘हे कृष्ण, इन सभी को मारने के बाद, मुझे जो राज्य मिलेगा, उसका मैं क्या करूंगा? कितना विनाश होगा…कुल का नाश हो जाने पर मेरे जीवन का महत्व ही क्या रह जाएगा?
मुझे लगता है, ऐसी परिस्थितियां मेरे जीवन में भी आती हैं, हम भी सम्बन्धों के जाल में फं स जाते हैं। हम एक परिवार तक सीमित हो जाते हैं, जबकि जीवन का उद्देश्य तो अलग ही है। अर्जुन भी इसी उधेड़बुन के चलते श्रीकृष्ण से कहते हैं,‘इस युद्ध में विजय के बदले मुझे तीनों लोकों का राज भी मिल जाए, तो भी अपने परिवार को कष्ट पहुंचाने वाले इस युद्ध को मैंं नहीं करना चाहूंगा।’ ये कहकर वे तीर-कमान नीचे रख देता है। अर्जुन पूरी तरह से निराश हो चुका है। हम भी जीवन में अक्सर निराश हो जाते हैं, इसलिए हम सभी के लिए अध्याय दो से लेकर आगे की यात्रा बहुत महत्वपूर्ण होगी।
Youtube video link:- श्रीमद भगवद् गीता | अध्याय 1 | Bhagwad Geeta Sanjay ki nazar se
Harshit says:
motivational and impressive thoughts
priya sharma says:
Motivational thought
angela says:
motivational thought
divyani says:
this is so spiritual management thought
akhil choudhary says:
Simple explanation and nice thoughts.
ahil khan says:
Inspirational thought.
naman sharma says:
Impressive and motivative thoughts clearly explained.
naman surolia says:
Well explained. very helpful to sum up with gita