कहा गया है कि एक अच्छा मछुआरा पिता अपने बच्चों को मछलियाँ पकड़कर नहीं देता बल्कि मछलियाँ पकड़ना सिखाता है क्योंकि अगर वह मछलियाँ पकड़कर बच्चों को देगा तो वे उस पर निर्भर हो जाएंगे।
मानव शरीर भी एक ईश्वरीय उपहार है जिसे मापने की कोई मशीन नहीं बनी है। यह प्रकृति में होने वाले सभी परिवर्तनों जैसे सर्दी, गर्मी, वर्षा, नमी, ठंडक आदि को अनुभव कर सकता है। प्रकृति इन सभी परिवर्तनों में संतुलन बनाए रखती है। सच में प्रकृति ईश्वर का एक अनमोल उपहार है। एक सार्वभौम शक्ति है जो इस पूरे ब्रह्माण्ड को निरन्तर चला रही है।
हमें भी इस प्रकृति से कुछ न कुछ सीखना चाहिए। हम में क्षमता है कि हम कुछ नया कर सकें। कोई नया आविष्कार, खोज कर सके। आवश्यकता है समुचित नियोजन (planning) की व उसको क्रियान्वित (implement) करने की । हम अपनी ऊर्जा से ही उसका स्थिरता के साथ सतत विकास कर सकते है। अगर एक अच्छा उद्यमी बनना है तो उसके लिए जरूरी है कि हम छोटे-छोटे काम करें और रिस्क उठाये। अगर छोटे-छोटे प्रयास करेंगे तो ही बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। छोटी सफलता ही बड़ी सफलता की ओर हमें ले जाती है। अतः जरूरी है कि हम अपना आत्मविश्वास बढ़ाएँ और उस लक्ष्य की ओर चले जिसे हमें अचीव करना है। इसके लिए जरूरी यह भी है कि हम जिम्मेदारी ले और कहें ‘‘मैं हूँ ना‘‘ (अर्थात् I am responsible)।
कहा गया है कि एक अच्छा मछुआरा पिता अपने बच्चों को मछलियाँ पकड़कर नहीं देता बल्कि मछलियाँ पकड़ना सिखाता है क्योंकि अगर वह मछलियाँ पकड़कर बच्चों को देगा तो वे उस पर निर्भर हो जाएंगे। वे आत्मनिर्भर नहीं बन पाएँगे। अतः जिन्दगी में किसी से कुछ लेने के लिए ही तैयार न रहे बल्कि देने की भी कोशिश करें। इंडीपेंडेट (आत्मनिर्भर) बने, रिसपॉन्सिबल बने। ये गुण ही धीरे-धीरे बड़े होकर हमें पॉवरफुल बनाएँगे। ये संदेश ही हमारे जीवन को यथार्थ में सफल बना सकता है । ये बात अपने प्रियजनों से भी कहे कि ‘‘मैं हँू ना‘‘ (I am responsible) इसे एप्लाई भी करे। बात कागज तक ही सीमित न रहे बल्कि जीवन में भी लागू की जाए। यही एक सफल जीवन की पहचान है।
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monika says:
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meena says:
Its a great word to change the world.
uravshi says:
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