साधारण इंसान किसी मरते हुए व्यक्ति के बारे में अन्तिम रूप से यह नहीं बता सकता कि उसका अन्तिम क्षण कब होगा ? परन्तु एक चिकित्सक इस अवस्था के बारे में स्पष्ट रूप से बता सकता है कि, अमुक व्यक्ति मरने वाला है। मानव शरीर का अध्ययन जीव विज्ञान (biology) के अन्तर्गत किया जाता है और इस शरीर को गतिमान बनाने की प्रक्रिया को चेतना के नाम से जाना जाता है। जिसका अध्ययन भौतिकी (physics) में किया जाता है। एक चिकित्सक से हमने physics और biology का सम्बन्ध जानना चाहा तो उन्होनें अपने अनुभव के आधार पर बताया कि physics शरीर के कार्यप्रणाली के नियमों पर आधारित है जिसके फार्मूलों (नियमों) पर मानव शरीर कार्य करता है। biology तो हमारे शरीर के सबसे छोटे कण जिन्हे ‘मालेक्यूल‘ के नाम से जाना जाता है, के निर्माण/रचना की व्याख्या करता है। इस प्रकार biology physics पर आधारित है न कि physics biology पर । कहने का मतलब यह है कि इंसान का शरीर उसकी चेतना के आधार पर कार्य करता है। हम सभी की प्रकृति अलग-अलग होती है, क्योंकि मानव शरीर में विभिन्न प्रकार के डी.एन.ए. और सेल होते है। हमारे विचार व इच्छाएं हमारी चेतना द्वारा हमारे दिमाग तक पहुचाएं जाते है। यदि आप सोचते है, ‘‘कि मैं बहुत दुखी इंसान हूँ, मैं अपने पढ़ाई, परिवार और व्यवसाय से दुखी हँू ।‘‘ तब हमारा अवचेतन मन हमसे प्रश्न करेगा कि तुम क्या चाहते हो ? तब आपका जवाब होगा कि ‘‘मैं जिन्दा नहीं रहना चाहता या मरना चाहता हूँ‘‘। तब आपका अवचेतन मन आपकी इस नकारात्मक अवस्था के माध्यम से आपके मन और शरीर को निश्चित रूप से प्रभावित करेगा। यदि हम आलोचना के द्वारा शुरूआत करते है तो यह हमारे लिए खतरनाक हो सकता है। अन्ततः यह हमारे अवचेतन से प्रभावित होकर कोई भी शारीरिक रूग्णता को उत्पन्न कर देगा। यदि कोई भी एक कारण इस अवस्था के लिए जिम्मेदार होगा तो वह चिन्ता और दुख के विचारों का प्रभाव ही होगा। यदि हम हमारे चेतन और अवचेतन द्वारा हमारे दिमाग को सही या गलत जो भी सन्देश देते है तो हमारे शरीर के सैल और डी.एन.ए. वैसी ही उर्जा उत्पन्न करते है। यदि कोई व्यक्ति जो किसी असाध्य रोग से पीडि़त है तो हम उसे मंत्रो के उच्चारण से सकारात्मक उर्जा उत्पन्न कर सकते है। एक ऐसा ही मन्त्र है जो असाध्य रोग की पीड़ा को कम कर सकता है और शरीर की ऊर्जा को बढ़ा सकता है तो वह है – महामृत्यंुजय जप ।
इस मंत्र को जपने से व्यक्ति असाध्य रोग की पीड़ा से मुक्ति पा सकता है।
मंत्र निम्न प्रकार से है:-
।। ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
ऊर्वारूकमिव बन्धनात् मृत्र्योमुक्षि अमामृंताम्।।
इस मन्त्र का मूल अर्थ हमारे शरीर की चेतना व अवचेतना दोनों स्थितियों को सुधारकर सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण करता है। अतः हमें हमारें आलोचनात्मक व्यवहार को सुधारकर नकारात्मक ऊर्जा को कम कर जीवन के खतरों को कम कर सकते हंै। हमें शिकायतों की जगह सकारात्मकता को अपनाना होगा और इसके लिए कुछ दिशा-निर्देश तय करने होंगे। यदि ऐसा नहीं होगा तो, हम अनजाने में ओर कहीं चले जाएगें। “It is a guideline soughtout things” जब तक मैंने आपको साइन्टिफिक रिजन नहीं बताया कि, इसकों सोचने से साइन्टिफिक नुकसान क्या होगा तब तक आप यह नहीं सोचेगें किसी भी चीज को फाॅलो नहीं कर पाएंगे। मुझे यह नहीं करना चाहिए -जैसे कुछ लोग तोते की तरह पढ़ और रह रहे है, कुछ लोग पदार्थ/तथ्य को नहीं समझ रहे है। इस चीज को समझना चाहिए कि बुरा नहीं सोचना, करना और देखने जैसे तथ्यों के पीछे क्या लाॅजिक है। यह मायने नहीं रखता कि किसी एक ही चीज को दोहराया जाए। रटते तो वे है जो तोते होते है, जिन्हें ज्ञान समझ नहीं आता। ज्ञान को तो वो सुपरफिक्षन स्तर पर समझ रहे होते है। ज्ञान को समझने के लिए दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है। सुनना, देखना, बोलना ये सब इनपुट सोर्सेज है। इस प्रकार यह एक अच्छा प्रश्न है कि हम कुछ नवाचार कैसे कर सकते है? विचार हमारे बे्रन से आते है और ब्रेन विचारों की फैक्ट्री है जो हर क्षण कुछ नया जेनरेट कर रही है। इन सबके लिए अध्ययन की आवश्यकता है जो सिर्फ पढ़ना… पढ़ना….. पढ़ना….. ही नहीं है। इसके लिए एक अलग रचनात्मक सोच की आवश्यकता है और सच्चाई से जुड़े रहने की जरूरत हैं। वही लोग कुछ बोल पाने का साहस रखते है जो सच्चाई से जुड़े रहते है और अपने चेतन को जागरूक रख पाते है।
ॐ त्रयम्बकं! ॐ शान्ति शान्ति शान्ति।
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priyanka says:
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ज्ञानी जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद्,
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