om

अधिकांश लोग सुबह की शुरूआत प्रार्थना में गायत्री मंत्र के साथ करते है। ऐसा माना जाता है कि यह मंत्र शक्तिशाली मंत्र है। दूसरे लोगों के उपहास के डर से हम इन मंत्रो को सार्वजनिक रूप से करने से हम डरते है। हमें अपनी संस्कृति, परम्परा और रीतिरिवाजों से जुड़ाव रखना चाहिए। कई संस्थाओं व स्कूलों का निरीक्षण करते हुए यह पाया कि अधिकांश लोग इस मंत्र को जपते तो लय से है पर धारण नहीं करते है। वे लोग वाकई प्रशन्सा के लायक है जो इसे जपने के साथ-साथ इसका भावार्थ भी जानते है। चाहे उसकी भाषा संस्कृत, हिन्दी या अन्य कोई भाषा हो। कभी-कभी यह जानकर दुख होता है जब गायत्री मंत्र का अर्थ पूछे जाने पर संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है। कुछ लोग बोलते ही रहते है और बहुत कम लोग है, जो बोलने के साथ कुछ करते भी है । परिवर्तन तो करने से आता है, बोलने से नहीं। कहने का तात्पर्य है कि किसी भी वस्तु को समझना है तो उससे निरन्तर जुड़ाव रखना होगा। आज से कोई 10 हजार वर्ष पूर्व इस धरती पर कोई चीज थी तो वह थे ‘सूर्य देव‘ । इनसे अलग हुए अंशो से पृथ्वी, चन्द्रमा एवं तारो का निर्माण हुआ, इसी कारण सूर्य देव की आराधना की जाती है। इस आराधना में गायत्री मंत्र का बहुत महत्त्व है। इसकी महत्ता को समझने के लिए 500 स्कूलों का निरीक्षण किया गया और यह पाया गया कि लगभग 70 प्रतिशत स्कूलों की प्रार्थना सभा में इस मंत्र का गायन किया जाता है। जब प्रार्थना सभा में मौजूद शिक्षक विद्यार्थी एवं अन्य मौजूद व्यक्तियों से इसका भावार्थ जानने की कोशिश की गई तो निराशा ही मिली। हम रोजाना इस मंत्र का जाप करते है और इसकी गहराई को समझने की कोशिश नहीं करते। यदि ऐसा ही चलता रहेगा तो कभी कोई बदलाव नहीं आएगा। हमें इस मंत्र को सुनने के साथ ही समझना होगा और धारण भी करना होगा। यह धारण सकारात्मकता का प्रतीक होगा। हम रोजाना इस मंत्र को सुनते है, पर समझने की कोशिश नहीं करते है। ऐसे तो हममें कोई बदलाव नहीं आएगा । हमें रोज सुनना होगा ,समझना होगा और अपने आप पर लागू भी करना होगा। परिवर्तन तभी सम्भव है। यदि हमारे शरीर में कुछ भी नहीं है तो संसार भी कुछ नहीं है।
धार्मिक सम्प्रदायों में माना जाता है कि लहसुन, प्याज व मांसाहार से हमारी तामसिकता में वृद्धि होती है। पर….. जहां तक समझने की बात है तो तामसिकता से खान-पान का इतना गहरा सम्बन्ध नहीं होता, जितना यह विचारों से आती है। तामसिकता का अर्थ तो नकारात्मकता से है जो गलत विचारों से आती है, और गलत संगत से आती है। मैंने कई बार बियानी काॅलेज में प्रार्थना सभा में गायत्री मंत्र को लयबद्ध उच्चारण करने के बाद भावार्थ भी समझाया है । आज हम पुनः इस मंत्र के भावार्थ का स्मरण करेंगे । आप सभी लोगों को इस मंत्र की शक्ति को समझते हुए, इसे दैनिक जीवन में शामिल करना चाहिए और धारण भी करना चाहिए। कुछ लोग तो इसकी गहराई को जानते नहीं और कुछ यदि इसका अर्थ जानते भी है तो आधुनिकता के कारण संकोचवश नहीं कहते है। जब तक हमारे पास इस मंत्र को क्यों उच्चारित करना चाहिए का जवाब नहीं होगा तो हम इसे समझने में नाकाम ही होंगे । वास्तव में गायत्री मंत्र को जो जपता है, बोलता है और धारण भी करता है तो वह उसकी शक्ति को जानता है। मेरा अनुभव है कि इस संसार को 1 प्रतिशत लोग ही चलाते है बाकि 99 प्रतिशत लोग चलते है । ऐसा कहने का मेरा मतलब है कि एक प्रतिशत लोग लीडर होते है और 99 प्रतिशत लोग उनके अनुगामी होते है। यदि हम 99 प्रतिशत सरीखे लोगों में शामिल होना चाहते है तो चीजो को रटकर रखते रहना चाहिए और यदि दुनिया को चलाने वाले 1 प्रतिशत में शामिल होना चाहते है तो हमें अपने आप में परिवर्तन लाना होगा। हम रोज एक ही तरीके से नहीं जी सकते, हमें रोज कुछ नया करना होगा। हमें गायत्री मंत्र को धारण करना होगा ,जो हमारी संकुचित मानसिकता को तोड़कर परिवर्तन लाएगा। आज ही हमें अपने में परिवर्तन करते हुए गायत्री मंत्र की शक्ति को समझना होगा। भावार्थ को समझना होगा। इसकी व्याख्या को समझने के लिए गायत्री मंत्र को जानना होगा:-
मंत्र का अर्थ – मंत्र शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। मन$यंत्र
।। ऊँ भूर्भूवः स्वः तत्सवितुवरेण्यम भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ।।
इसे हमें दैनिक प्रार्थना में सम्मिलित करना होगा और आत्मा में धारण करना होगा। प्रस्तुत है इस मंत्र की शाब्दिक व्याख्या:-
ऊँ – ऊँ शब्द अ/उ/म वर्णो से मिलकर बना है। इसको ओम शब्द से उच्चारित किया जाता है। ओम शब्द सर्वशक्तिमान है और चन्द्र बिन्दू ऊर्जा का प्रतीक है। यह ब्रहमा, विष्णु, महेश से परे है, परमपिता से परे, तम-रज-सत् तीनों गुणों से परे है।

भू- पृथ्वी/धरती

र्भूवः-पृथ्वी के उपर

स्वः-स्वर्ग

तत्.-के समान

सवितु- सूय्र्र

र्वरेण्यम -वरण करने योग्य

भर्गो -पापो ं का नाश करने वाला

देवस्य -देने वाला

धि महि -धारण करने योग्य

धि यो – पापों को धोने वाला

यो नः-एक समान

प्रचोदयात् -नमन करना ।

इस प्रकार गायत्री मंत्र का विभिन्न भाषाओें मे अलग -अर्थ हैं। वास्तविक अर्थ उस परम पिता परमेश्वर से है जो उर्जा का स्त्रोत है,जो इस सृष्टि का रचियता है और हमारे पापों का नाश करने वाला है।हम उस परम पिता को शीश झुकाते है।
शिव शक्ति के स्त्रोत है,हम इसी शक्ति को नमन करते है जो इस संसार को चलाती है।यदि हम हमारी नकारात्मकता को हटाना चाहते है तो हमें सकारात्मक रुप से गायत्री मंत्र का उच्चारण करते रहना होगा । यह मंत्र हमे ईश्वर से जोडे रखता है जिससे हमारे शरीर का उर्जा तंत्र सुचालित होता है । हमारा शरीर तो नश्वर है।हम एक उदाहरण ़द्धारा इस शरीर और मंत्र द्धारा नाशवान शरीर के सुचालन की प्रक्रिया को समझ सकते है। हमारा शरीर इस मंत्र के बिना एक सेल रहित टार्च के समान है।टार्च मे सेल लगाते ही वह अधंेरे को खत्म कर देता है,ठीक उसी तरह गायत्री मंत्र के सम्पक्र्र मे आते ही हमारा सुषुप्त शरीर सकारात्मक उर्जा पा्रप्त कर जागृत हो उठता हैैै। इसलिए दुनिया के वे एक प्रतिशत लोग जो दुनियो को चलाने की शक्ति रखते है वे कहीं न कही किसी न किसी रुप मे इस शक्ति से जुडे रहकर उर्जा प्राप्त करते रहते है।इस ब्लाग के माध्यम से गायत्री मंत्र की महता को बताने का हमारा प्रयास भी लोगो को दुनिया के एक प्रतिशत लोगो में शुमार करना है।
ओम शान्ति शान्ति शान्ति ऊँ

Prof. Sanjay Biyani

Director (Acad.)

(Thoughts delivered in Assembly )

To know more about Prof. Sanjay Biyani visit www.sanjaybiyani.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes:

<a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>