एपिसोड-१२ (राम-रावण युद्ध)
इन दिनों हम रामायण धारावाहिक देख रहे हैं। अगर आप किसी कारण से यह नहीं
देख पाए हो तो बहुत ही संक्षिप्त शब्दों में आज के इस धारावाहिक से जीवन से
संबंधित महत्वपूर्ण दृश्य-सूत्र को संक्षिप्त में इस प्रकार समझा जा सकता है:
दृश्य संख्या 1: मित्रता जाति के आधार पर नहीं होती।
इस दृश्य में राम व रावण युद्ध भूमि में है। रावण अपनी प्रशंसा खुद ही कर रहा है।
इस पर राम कहते हैं दुनिया में 3 प्रकार के प्राणी पाये जाते हैं। पहले वो जो सिर्फ कहते
हैं, दूसरे जो कहते हैं और करते हैं एवं तीसरे जो सिर्फ करते हैं। राम कहते हैं हे रावण!
तुम सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें अधिक करते हो। इसके बाद जब रावण ने विभीषण पर दिव्य
शक्ति छोड़ी तब राम ने उसे अपने ऊपर ले लिया। इस पर भावुक होकर विभीषण जी
ने श्रीराम से कहा- मैं तो तुच्छ प्राणी हूं, राक्षस जाति का हूं। तब राम ने कहा मित्रता
जाति के आधार पर नहीं की जाती। इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें बड़-बोले
स्वभाव से बचना चाहिए तथा एक सच्चे मित्र को मुसीबत में अपने मित्र का बेहिचक
साथ देना चाहिए। मित्र धर्म का जाति कोई आधार नहीं होती है।
दृश्य संख्या २ : जो होता है अच्छे के लिए होता है।
जब लक्ष्मण श्रीराम से यह कहते हैं कि सब कुछ मेरी वजह से हो रहा है। अगर उस
दिन मैं सीता माता को अकेला छोडक़र नहीं आता तो ऐसा नहीं होता। इस पर श्रीराम
कहते हैं जो होता है अच्छे के लिए होता है। अगर ऐसा नहीं होता तो हम ऋषि-मुनियों
को राक्षसों से मुक्त नहीं करा पाते तथा अधर्म का नाश नहीं हो पाता। इससे हमें यह
सीख मिलती है कि कभी-कभी जीवन में मुसीबतें आती हैं। ऐसी दशा में हम दु:खी
होकर ईश्वर को याद करने लगते हैं। समय व्यतीत होने के बाद हमें यह पता चलता है
कि उसी मुसीबत के कारण हमारे जीवन में उन्नति होती है। इसलिए हमेशा यह बात
हमारे ज़हन में रहनी चाहिए कि जो होता है अच्छे के लिए होता है।
दृश्य संख्या 3: अगर कर्म-धर्म के अनुसार काम करें तो ईश्वरीय शक्ति भी आपकी
मदद करती है।
इस दृश्य में इंद्र देवता बाकी सब देवताओं से राम व रावण के युद्ध के बारे में बात कर
रहे हैं। इंद्र जी कहते हैं बराबरी करने के लिए श्रीराम को भी रथ देना पड़ेगा। तब
ब्रह्माजी इंद्र को अपना रथ श्रीराम को देने की आज्ञा देते हैं। इससे साफ दिखता है कि
श्रीराम धर्म के साथ थे तो भगवान भी उनकी सहायता कर रहे थे। इससे हमें यह सीख
मिलती है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करना चाहिए। ऐसा करने से
प्रकृति व ईश्वर उस कार्य को पूर्ण करने में मदद करते हैं।
दृश्य संख्या ४: अत्याचार तो अत्याचार ही रहता है चाहे कितनी ही वीरता से करें।
इस दृश्य में मंदोदरी रावण से कहती है कि सिर्फ एक ही दशा ऐसी है जिससे दोनों की
हार नहीं होगी और वह है ‘संधि’। इसके जवाब में रावण कहते हैं कभी-कभी लगता है
कि तुम रावण की पत्नी कहलाने योग्य नहीं हो। तुम्हारे अंदर वीरता की एक झलक
तक नहीं दिखती। तब मंदोदरी कहती है कि ‘वीरता’ शब्द ओढ़ लेने से आदर नहीं मिल
जाता है। यदि प्राणी धर्म के लिए लड़ता है तो वह दोनों ही दशा में वीर कहलाता है,
चाहे वह जीत जाये या मर जाये। परंतु जब अधर्म के लिए लड़ता है तब वह जीतने के
बावजूद भी अत्याचारी ही कहलाता है और यदि वह हार जाये तो लोग कहते हैं उसे
उसके कर्मों का दण्ड मिल गया। इससे हमें यह सीख मिलती है कि अत्याचार व वीरता
में भेद होता है। अत्याचार के परिणाम से उपयश मिलता है चाहे उसे कितनी ही वीरता
से क्यूं नहीं लड़ा गया हो।