ज्ञान-विज्ञान योग
(चेतना)
पिछले अध्याय में हमने योगी बनने की प्रक्रिया को जाना और इस अध्याय में हम छह बिन्दुओं पर बात करेंगे।
– ज्ञान और विज्ञान क्या है?
– जड और चेतना क्या है?
– त्रिगुण क्या है?
– ईश्वर को कैसे पाया जाता है?
– भक्त कौन है और कितनी तरह के होते हैं?
– देवता कौन है और कितनी तरह के होते हैं?
मुझे लगता है कि इस अध्याय को समझने के बाद आप ईश्वर को समझ जायेंगे, आइये मैं आपको आमंत्रित करता हूँ इस यात्रा पर जिसका नाम है श्रीमद् भगवद गीता संजय की नजर से…………
श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि तुम्हें आज एक विशेष ज्ञान देने जा रहा हूँ। तुम जिस भी वस्तु को देख रहे हों वे सब विज्ञान है फिर चाहे वो ब्राह्माण्ड, दुनिया, सूर्य, चंद्रमा, तारे, प्रकृति ही क्यों न हो और ऐसी वस्तु जिसे तुम छू नहीं सकते वो ज्ञान है जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है। कृष्ण कहते हैं कि इस विज्ञान को छोडकर मुझमें आ जाओ लेकिन अर्जुन पूछते हैं कि क्या ये इतना आसान है। कृष्ण कहते हैं कि तुम यह भी समझो कि प्रकृति में जितनी भी वस्तुएं दिखाई दे रही हैं वह पाने योग्य नहीं है। क्योंकि ये नष्ट होने वाली है, लेकिन ज्ञान और ऊर्जा कभी भी नष्ट नहीं होती हैं इसलिए तुम संसार और माया को छोडकर मेरी शरण में आ जाओ।
कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि इस दुनिया में दो ही तरह के तत्व हैं-जड और चेतन, कृष्ण कहते हैं कि पूरा ब्रह्माण्ड मेरा शरीर है और मैं इसमें चेतन रूप में रहता हूँ। कृष्ण कहते हैं कि हजारों मनुष्य मुझे प्राप्त करने की कोशिश करते हैं लेकिन कोई एक ही होता है जो मुझे प्राप्त कर पाता है। इसे कुछ कठपुतली के खेल की तरह समझिये जब कठपुतली का खेल दिखाया जाता है तो सब लोग कठपुतली को देखते हैं लेकिन किसी का ध्यान उस कठपुतली को चलाने वाले की ओर नहीं जाता क्यांेकि वो तो पर्दे के पीछे रहता है। उसी प्रकार मनुष्य जड तत्व को ही देखता है लेकिन चेतन तत्व को नहीं देखता, जड अर्थात प्रकृति और चेतन अर्थात आत्मा जिसे हम ईश्वर कहते हैं। इस तत्व को समझना इस अध्याय का मूल आधार है।
त्रिगुण की व्याख्या करते हुए कृष्ण कहते हैं इससे तात्पर्य- सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण से है। त्रिगुण पूरी प्रकृति में व्याप्त है। कृष्ण कहते हैं कि ये तीनों मुझसे ही उत्पन्न हुए हैं लेकिन मैं इनमें नही रहता क्योंकि मैं उनसे जुडता नहीं, मैं बंधन मुक्त हूँ। मुझे लगता है कि जब तक हम जड तत्व यानि प्रकृति से जुडे रहेंगे हम बंधनों में जकडे रहेंगे लेकिन जब हम चैतन्यता को समझेंगे तभी तो ईश्वर को समझ सकते हैं। मुझे लगता है कि यदि गीता या वेदों को समझना है तो हमें त्रिगुण को समझना होगा। इस त्रिगुण के कारण मनुष्य मोह और माया में फंसा रहता है जिस कारण उसे बार-बार जन्म लेना पडता है। बंधन मुक्त होने के लिए त्रिगुण से निकलना होगा। अर्जुन पूछते हैं कि ईश्वर को पाने का तरीका क्या है? तब कृष्ण कहते हैं कि ईश्वर को पाने के लिए जरूरी है कि निष्काम कर्म किये जायें साथ ही राग और द्वेष से दूर होना होगा मुझे लगता है कि निष्काम से प्रकृति से दूर जाया जा सकता है और राग-द्वेष को छोडने से हम भीतर से निर्मल हो सकते हैं और जब ऐसा होगा तब हमारी आगे की यात्रा आरम्भ होगी और जब ये सब संभव हो पायेगा। तभी भजन आरम्भ होगा, तब ईश्वर समझ में आने लग जायेंगे। भक्त के बारे में बताते हुए कृष्ण कहते हैं कि भक्त भी चार तरह के होते हैं-
1. जो अर्थ के लिए भजन करते हैं- अर्थात् जिनके मन में इच्छाएं होती हैं और उनकी पूर्ति के लिए भजन किया जाये तो ऐसे भक्त इस श्रेणी में आते हैं।
2. जो आर्त भक्त हैं- इस श्रेणी में वो भक्त आते हैं जिनके जीवन में कोई समस्या है और उस समस्या को दूर करने के लिए जो मेरा भजन करते हैं।
3. जो जिज्ञासु हैं- ऐसे भक्त जो मेरी खोज करना चाहते हैं, मुझे जानना चाहते हैं वो इस श्रेणी में आते हैं।
4. जो ज्ञानी हैं- ज्ञानी से तात्पर्य आत्मज्ञानी से है। ऐसे भक्त जिन्हे स्वयं का परिचय हो चुका और अब वो मुझे जानना चाहते हैं।
कृष्ण कहते हैं कि मुझे ज्ञानी भक्त बहुत प्रिय हैं। आखिर में कृष्ण, देवता के बारे में बताते हुए कहते हैं कि जो देता है वो देवता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य अपनी कामनाओं के अनुरूप देवी-दवता का चयन करता है। जो सकाम भक्ति से भजता है वो अपनी मर्जी के अनुरूप अपने भगवान का चयन करता है और उनकी कामनाओं की पूर्ति होती है। कृष्ण कहते हैं कि मैं ही तो भक्तों में उनके ईश्वर के प्रति श्रद्धा की रक्षा करता हूँ। लेकिन इन सबकी पूजा करने से पदार्थों की ही तो प्राप्ति होगी और इस कारण वो बंधन मुक्त भी नहीं होगा और बंधन मुक्त होने के लिए ईश्वर को पाना होगा जो ऊर्जा है उसमें सब समाहित हैं क्योंकि जब प्रकृति से परे होंगे तभी तो ईश्वर मिलेगा। कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि जो मनुष्य मेरी शरण में आकर मुझे लगातार भजेगा उसे मैं जीवन और मरण से परे ले जाऊंगा और ऐसे व्यक्ति को जिन चीजों की प्राप्ति होगी वो है- ब्रह्म, सम्पूर्ण अध्यात्म, सम्पूर्ण कर्म, अधिभूत, अधिदेव और अधियज्ञ। अगले अध्याय में हम इन सबको गहराई से जानेंगे। अक्षय ब्रह्मयोग में हम अर्जुन की जिज्ञासा और कृष्ण द्वारा दिये गये उत्तर को और गहराई से समझेंगे। एक बार फिर हम मिलेंगे इस अद्भुत यात्रा में। आप सभी का धन्यवाद इस यात्रा में मेरे साथ जुडे रहने के लिए।
YouTube video link- https://youtu.be/jc00v37-eMA
Written by – Dr. Sanjay Biyani