हाल ही में लाखों लोगों की भीड़ अहमदाबाद में इकट्टी हुई और पटेल पाटीदार आरक्षण का मुद्दा गुजरात में गरमाने लगा। इसके बाद पटेलों ने दांडी से साबरमती तक की विशाल रैली निकालने की सोची। कभी गुर्जर आरक्षणए कभी जाट आरक्षणए तो कभी मुस्लिम आरक्षण समय.समय पर ये सब आंदोलन के रूप में सुलगते रहे हैं। यह भी सच है कि अंग्रेजों ने लगभग 200 वर्षों तक हम लोगों पर शासन किया और समाज के लगभग सभी वर्गों ने जीवन में आर्थिक परेशानियों को इस दौरान महसूस किया है। शायद इसीलिए सभी लोग जल्दी से जल्दी किसी भी प्रकार से आर्थिक रूप से सुरक्षित हो जाना चाहते हैं। समाज का जो वर्ग जितना शोषित रहाए वह उतनी ही बड़ी आरक्षण की मांग रखने लगा। आरक्षण के मसले को समझना है तो हमें शुरुआत से समझना होगा। वेदों में उल्लेख मिलता है कि वर्ण का आशय रंग या त्रिगुण से है। पहला सफेद रंग सत्व गुण माना गया हैए दूसरा लाल रंग रज गुण माना गया है व तीसरा काला रंग तमस गुण माना गया है। समाज का वह वर्ग जिसने ज्ञान व ब्रह्म प्राप्ति को आधार बनायाए उसे ब्राह्मण कहा गया। ये सत्व गुण प्रधान थे। वह व्यक्ति जो नेतृत्व व सुरक्षा का कार्य देखते थे उन्हें क्षत्रिय कहा गया। ये रज गुण प्रधान थे। समाज का वह वर्ग जो व्यवसाय व प्रबंधन का कार्य देख रहे थे उन्हें वैश्य कहा गया तथा इनमें सत्व व रज दोनों गुण विद्यमान रहते हैं तथा कृषिए पशुपालन व सेवा का कार्य करने वाल शुद्र कहलाए । इनमें तमस गुण प्रधान रहा। इस प्रकार कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था की गई थी। परन्तु समय बीतता गया और इंसान वर्ण को जाति में बदलता गया और आखिरी में इंसान ने वर्ण को कर्म बना दिया। वास्तव में अगर इतिहास को देखें तो चन्द्रगुप्त शूद्र जाति के होते हुए भी अपनी नेतृत्व क्षमता के कारण सम्राट बनाए गए। इसी प्रकार परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी 21 बार क्षत्रियों का विनाश करते हैं। कहने का आशय यह है कि हर व्यक्ति में असीम क्षमताएं होती हैं। जरूरत इस बात की है कि शिक्षा के दौरान उसके स्वाभाविक गुणों का विकास किया जाये। हमारे संविधान द्वारा आज हर व्यक्ति को अपनी योग्यता के अनुसार अपना कॅरियर चुनने का विकल्प उपलब्ध है। परन्तु फिर भी संवैधानिक प्रावधान व राजनैतिक महत्त्वकांक्षाओं के कारण विद्यार्थी ना तो अपनी योग्यता का पता लगाना चाहता है और ना ही अपनी इन योग्यताओं को बढ़ाना चाहता है क्योंकि उसका पूरा ध्यान आरक्षण कोटे के द्वारा उपलब्ध नौकरी को प्राप्त करने में लग गया है। समाज के एक बड़े वर्ग द्वारा आरक्षण समाप्ति की बात की जा रही है तो किसी दूसरे वर्ग द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को आरक्षण की बात की जा रही है। वास्तव में हमें सोचना होगा कि आरक्षण का लाभ शिक्षा में दिया जाए या नौकरी में दिया जाए या फिर राजनीति में दिया जायेघ् नौकरी व राजनीतिए योग्यता के आधार पर दिये जाने पर ही देश का समुचित विकास संभव है तथा योग्यता का निर्माण उचित शिक्षा प्रणाली से ही संभव है। कितना अच्छा हो कि समाज के सभी पिछड़े वर्गों के बच्चों को बेहतरीन शिक्षा प्रदान की जाए और इस काम के लिए उदारवादी तरीके से आरक्षण दिया जाये। जिस समय योग्य व्यक्तियों को योग्य काम मिलने लगेगाए देश के आर्थिक हालात बदलने लगेंगे। आरक्षण आंदोलन से सिर्फ समाज में कानून व्यवस्था ही खराब नहीं होतीए लोगों में द्वेष की भावना ही पैदा नहीं होती बल्कि अयोग्य व्यक्तियों द्वारा कार्य संभालने से देश की राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था भी चरमराने लगती है। अगर हम वास्तव में देश को विकसित राष्ट्र में बदलना चाहते हैं तो हमें उदारवादी नजरिये से हर युवाओं को योग्य बनना होगा और इसके लिए शिक्षा व्यवस्था में बदलाव लाना होगा। इस बात पर विश्वास करना होगा कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। इसी प्रकार नौकरी व राजनीति में जातिगत आधार पर आरक्षण के मुद्दे पर पुनरू विचार करना होगा। इतना ही नहीं समाज को महिलाओं को भी समान अवसर उपलब्ध कराने होंगे। आइए आने वाले नवरात्रा में शक्ति का पूजन करेंए हांए हमें लगता है श्क्ति का आशय शारीरिक शक्ति से नहीं बल्कि इन भावनाओं की शक्ति से है। नवरात्र के अवसर पर सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं प्रेम स्नेह व सम्मान के साथ फिर मिलेंगे।

Dr. sanjay Biyani(Dir. acad.)
  1. Dr. Madhu gupta says:

    I agree with you. Now it is right time to reconsider reservation.. Because it spread jealous and revolt in the youth. In my view it damages harmony.. in the society.

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