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आज से 180 वर्ष पूर्व 2 फरवरी 1835 को ब्रिटिश पार्लियामेंट ;हाऊस ऑफ कॉमनद्ध में लार्ड मैकाले का एक प्रस्ताव वर्तमान शिक्षा पद्धति का आधार बन गया था। लार्ड मैकाले ने कहा था मैं कैथोलिक धर्म को संपूर्ण भारतवर्ष की सीमाओं से परे मानता हूँ और साथ ही मैं स्पष्ट रूप से यह नहीं स्वीकार कर पा रहा हूँ कि भारत में कौन चोर हैं और कौन भिखारीघ् मै स्पष्ट रूप से स्वीकार करता हूँ कि भारत में उच्च कोटि के नैतिक मूल्य हैं तथा यहाँ के निवासी ऐसी क्षमता वाले हैं कि मैं यह आशा बिल्कुल नहीं करता कि हम इस देश को कभी हरा पाएंगेए जब तक हम इस देश के साहस को क्षतिग्रस्त न करेंए जो कि इस देश की श्वास और सांस्कृतिक विरासत है। अतरू मेरा यह प्रस्ताव है कि भारत की प्राचीन गुरुकुल प्रणाली व उसकी संस्कृति को बदलना होगा। यदि भारतीयों को यह विश्वास दिलाया जाए कि अंग्रेजी भाषा का महत्त्व उनकी भाषा से अधिक है तो उनके आत्मसम्मान तथा संस्कृति को खंडित किया जा सकता है और ये वही बनेंगे जिसकी महत्त्वाकांक्षा हम करते हैंए एक विध्वंश राष्ट्र। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश पार्लियामेंट में इंडियन एजूकेशन एक्ट 1858 पारित किया गया। ब्रिटेन में पारित किए गए इंडियन एजूकेशन एक्ट को भारत में लागू कर कई गुरुकुलों को गैर कानूनी घोषित कर बंद कर दिया गया और कॉन्वेन्ट एजूकेशन का प्रचलन आरम्भ हुआ। आज 180 वर्ष व्यतीत होने के बाद लार्ड मैकाले की सोच हमारे आधुनिक एजूकेशन सिस्टम में स्पष्ट रूप से दिखने लगी है। देखने को तो विद्यार्थी भारतीय लगता हैए परन्तु भोजनए वेशभूषा और सोच समझ से व्यक्ति ब्रिटिश मानसिकता वाला नजर आने लगा है। इस सिस्टम के तहत तैयार हुआ शिक्षार्थी आज भी स्वयं को विद्यार्थी कहता है। वास्तव में विद्या का आशय तो स्वयं को मनए बुद्धि व आत्मा के रूप में देखना तथा परमात्मा से जोडऩा है ताकि जीवन में आनन्द के चरम को महसूस कर सकें। आज लगभग सभी विद्यालय शिक्षालय बन गये हैं। जहां 180 वर्ष पूर्व हमारी शिक्षा प्रणाली मूल्योंए व्यक्तित्व व अनुसंधान पर आधारित थीए वहीं आज की शिक्षा शारीरिक सुखए दिखावाए भाषा और परम्परागत चीजों को याद करने तक सीमित हो गई है। इस शिक्षा पद्धति के कारण सदियों से धर्मगुरु रहे इस देश में नए आविष्कार होने लगभग बंद हो गए हैं। आलम तो यह हो गया है कि प्रायरू हर व्यक्ति ही नौकर बनकर बहुत अधिक कमाना और सुरक्षित होना चाहता है। हमें इस बात पर पुनरू विचार करना होगा कि क्या राज्य से शासित यह डिग्री के रूप में दी जाने वाली वर्तमान शिक्षा पद्धति उचित है अथवा समाज के द्वारा अनुमोदित व प्रायोजित शिक्षा पद्धति श्रेष्ठ हैघ् निश्चित रूप से अभिभावकगण को भी इस बारे में सोचना होगा।
शिक्षा वह होनी चाहिए जिससे जीवन श्रेष्ठ बनता होए जिससे हमारे पारिवारिक जीवन में प्रेम व करुणा बढ़ती होए जिससे नवीन आविष्कार होते होंए जिससे व्यक्ति परम्परागत विचारों से उठकर श्रेष्ठ नवीन विचारों को सहर्ष स्वीकार करता हो। हमने उस संस्कृति को अपना लिया है जिसमें नारी को भोगने वाली वस्तु मानकर यह कहा गया कि इसमें तो आत्मा ही नहीं होती। इतना ही नहीं यूरोपियन संस्कृति में 1928 तक तो नारी को पुरुष के समान मत देने का अधिकार प्राप्त ही नहीं था। अगर इस संस्कृति को अपना लेने के कारण नारी उत्पीडऩ बढ़ रहा है तो दोष किसका हैघ् हमें फिर से इस बारे में सोचना होगा। इतना ही नहीं हम उस संस्कृति को अपनाते जा रहे हैं जिसमें यह माना गया कि बच्चे स्त्री व पुरुष के आनन्द के क्षणों में बाधा हैं। अतरू इस जिम्मेदारी को कॉन्वेन्ट स्कूलए जिन्हें राज्य शासित करता हैए वह उठाये। ऐसे में हमारी पारिवारिक व्यवस्था में बदलाव आ रहा है तो कौन जिम्मेदार हैए हमें सोचना होगा। वास्तव में 180 वर्ष पूर्व लिए गए एक बड़े फैसले का परिणाम हमें स्पष्ट रूप से समाज में दिखने लगा है। समाज में बड़ा बदलाव शिक्षा पद्धति द्वारा ही संभव है। शिक्षा पद्धति पर पुनरू अवलोकन व बड़े फैसले लिए जाने की आवश्यकता है।
फिर मिलेंगे
प्रेमए स्नेह व सम्मान के साथ

Author:Dr. Sanjay Biyani(Director Acad.)
  1. Stormfall Rise Of Balur Cheats says:

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