महान विद्वान चाणक्य ने कुछ मूल्यवान सिद्धान्त दिए थे जो कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के अच्छे मार्गदर्शक सिद्ध होंगे। आइए! आज हम चाणक्य के कुछ बहुमूल्य सिद्धान्तों की चर्चा करते है और उन्हें अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करते हैं।
प्रथम सिद्धान्त- संघर्ष में विजय प्राप्ति हेतु आपके लिए आवश्यक है –
1 दृढ़ संकल्प
2 पहले से ही पूर्णतः तैयार हो जाना
3 इच्छा शक्ति जो किसी भी संघर्ष में विजयी होने के लिए अपरिहार्य एवं पर्याप्त साधन है।
दूसरा सिद्धान्त- सफलता प्राप्ति हेतु आपके लिए आवष्यक हैः-
4 चमत्कारिक शब्दों में आस्था रखना। किन्तु दूसरों के मत या बातों में बिना विचारे विष्वास मत कीजिए पवित्र ग्रंथों या गुरूओं के द्वारा ऐसा ही बोला गया है। केवल उसी पर विश्वास कीजिए जो आपने अनुभव किया है, जो तार्किक है, जो आपके द्वारा पूर्ण परीक्षित है और जो मानवता के लाभार्थ हो और जो अधिक लोगों के लिए प्रसन्नता ला सकें।
जीवन में प्रसन्नता अत्यंत आवश्यक है। यदि यह सिद्धान्त सार्वभौमिक रूप से श्रेष्ठ है तो यह अवष्य स्वीकार किया जाना चाहिए।
तीसरा सिद्धान्त- विफलता के भय से मुक्ति पाने हेतु आपके लिए आवष्यक है-
5 एक अच्छी योजना का निर्माण और अपनी योजना पर पूर्ण विष्वास रखना। यदि योजना श्रेष्ठ है तो निर्णय भी श्रेष्ठ होगा। तीव्र आस्था और समर्पण से युक्त श्रेष्ठ योजना असंभव को संभव में रूपान्तरित कर सकती है। आषावादी प्रत्येक परिस्थिति में संभावना ढ़़ँूढ़ लेता है। निराषावादी प्रत्येक परिस्थिति में विफल होता है। सफलता और विफलता व्यक्त्ति की प्रवृत्ति पर निर्भर करती है। आइए! अपनी शक्ति का पूर्ण प्रयोग करें। आइए! संभावनाआंे से युक्त बनं।
श्रेष्ठ विचारों के द्वारा हम श्रेष्ठ कार्य कर सकते हैं। एक श्रेष्ठ षिक्षक कई विद्यार्थियोें में परिवर्तन ला सकता है। एक उचित शैक्षिणिक वातावरण के लिए हमें रचनात्मक बनना चाहिए। श्रेष्ठ विचार ही हमारे लिए श्रेष्ठ वातावरण का निर्माण करते हैं। हम चाणक्य के समान एक आत्मविष्वासी षिक्षक बन सकते हैं और अपने षिक्षण को प्रभावी बना सकते हैं, यदि हम निम्नलिखित बातें अपने जीवन में अपनाते हैं-
शिक्षण की समुचित तकनीक अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पाठ्य सामग्री पहले से ही समुचित रूप से तैयार कर लेनी चाहिए।
शिक्षण प्रक्रिया में परिवर्तन हेतु उचित पद्धति अत्यंत आवश्यक है।
आपका अपने विषय पर प्रगाढ़ नियंत्रण हो।
आप आत्मविष्वास से युक्त हो।
आप में साहस और अधिकारपूर्वक ज्ञान वितरण करने की पूर्ण क्षमता हो।
आपके विचार मौलिक हों जिन्हें रचनात्मक रूप से समझना संभव हो।
श्रद्धा अत्यंत शक्तिषाली है। यदि आप स्वयं को एवं अपने विद्यार्थियों को जानते हैं तो आप अपना शत प्रतिषत दे पाएंगें। विद्यार्थियों की मानसिकता को समझना अतिआवष्यक है। चाणक्य उन महान षिक्षकों में से एक है, जिन्होंने अपने षिष्यों को प्रभावी व आत्मविश्वासपूर्वक ज्ञान व निर्देषन प्रदान किया। हम उनके सिद्धांतों से सीखकर एक सफल षिक्षक बन सकते है। षिक्षक संपूर्ण समाज को रूपांतरित कर सकते है। यह संभव है यदि हमारे मस्तिष्क के प्रयोग द्वारा आत्मविष्वासपूर्वक अधिकाधिक ज्ञान का उद्भव हो। षिक्षकों में उत्साह, इच्छा शक्ति और दिए गए पाठ्यक्रम से अधिक प्रदान करने की मंषा होनी चाहिए।
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angela says:
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