आज मै आप लोगो से एक इम्पार्टेंट बात पूछना चाहूंगा कि हमारे सामने जितनी भी प्रोब्लम्स आती है उनका root cause क्या हमारी lust है क्या यह हमारी greed है, हमारा anger या फिर हमारी jealous है, क्या रीजन है इन सबका ?
हमारी लाइ्फ में जितनी भी प्रोब्लम emerge होने वाली है इन सबका कोई न कोई root cause होगा वो है हमारी छोटी छोटी ego उस ego के कारण हम अपनी 100 प्रतिषत चीजो को देख नही पाते है। तो सवाल आता है कि जो हमारी सबसे बडी प्रोब्लम इगो बनने वाली है तो इगो को हम इग्नोर कैसे करे? हम मैनेजर बनकर ऐसा मैकेनिज्म करे कि वर्कर के काम को फील करे। ना केवल वर्कर बल्कि एक स्वीपर को भी कंधे पर हाथ रख कर कह सके great! I respect you. क्योकि वह भी तो इंसान है। उसका भी एंडोक्राइम सिस्टम है,वही 206 हड्डिया है,समान डी एन ए है, समान कोमोजोमस है। तो ऐसा क्या किया जाए कि हम सब लोग पोपुलर वने, अच्छे मैनेजर बने। इसके लिए जरुरी है कि हम कुरान से, पुराण से जैनिज्म से, हिन्दुज्म से,फिजिक्स से, बायलाॅजी से सीखे। पर ये सीखने का प्रोसेस कैसे स्टार्ट होता है? इसे हमें समझना होगा।
मुझे इस सम्बन्ध में सबसे अच्छी सीख जैनिज्म (जैन धर्म) की लगी। मै आपसे यह बात पहले भी शेयर कर चुका हूँ। इस मत के अनुसार हम विनम्र बने ,सबको थैक्स कहना सीखे। सबसे बडा थैक्स नाॅलेज को और नाॅलेज प्रोवाइडर को कहना होगा। नाॅलेज प्रोवाइडर जो टीचर्स है। एक टीचर जो अलग-अलग स्टेज पर विभिन्न प्रकार के अनुभव लेता हैै। फस्र्ट स्टेज पर वे टीचर्स होते है जो अभी अभी पास आउट होकर आए है, फ्रेषर हैै। हायर स्टेज वे धारा प्रवाह बोलने जिन्हें हम उपाध्याय कहने लगते है। अगले स्टेज पर वे जो बोल रहे है वो करने भी लग जाते है, आचार्य बन जाते हैै। चैथी स्टेज पर लम्बंे अनुभव के बाद टीचर समझने लगता है कि मै कौन हूँ? मेरा क्या उद्देष्य है? इस तरह पांचवी स्टेज पर वह स्वयं को, ईष्वर को और एनर्जी को समझने लगता है। मुझे लगता है ये पांचो स्टेज की यात्रा से निकलता है। हम चाहते है कि पांचो स्तर की जर्नी हमे एनलाइट करे। वास्तव मे हमे बेहतर बनना है तो लीविंग के साथ नान लीविंग को भी धन्यवाद कहना होगा। एक टीचर मे ये पांचो स्टेज होती है-वो अरिहंत भी है, अरिणं भी है, सिद्धारणं भी है। तो हम हमारे टीचर्स को थैंक्स बोले। हम नालेजएबल बनें। नालेज की पहली कंडीशन है कि हम पहले हम humble बनें। Teaching is the most noble profession अगर देश बदलेगा तो अच्छे टीचर्स के कारण बदलेगा। उन्हे सक्रिय रहना चाहिये। टीचिंग प्रोफेषन को सम्मान दिया जाना चाहिए। मै उन सभी लोगो को बधाई देना चाहूँगा, जो इस प्रोफेषन से जुडे है। भावी टीचर्स को देखने पर उनके चेहरे पर चमक दिखाई देनी चाहिये, ताश के खेल में इक्के, बादशाह, गुलाम जैसे बड़े पत्तों की बजाय यह महत्त्वपूर्ण होता है कि हम सभी मिले हुए ताश के पत्तों को खेलते या फैकते कैसे है ? आपका चेहरा, आपका आने वाला भविष्य है। हमें अन्दर से व्यक्त्तित्व को निखारना होगा। आइये इसके लिए हम मेडिटेषन करते है।
मेडिटेशन के सबसे पहले हम हाथ जोड़ेगें, आँखे बन्द करके एक लॅम्बी साॅंस लेंगें और इस बार हम पंच नवकार मंत्र का उच्चारण करेंगें। मंत्र है-
णमों अरिहतांणं – शिक्षक का वह स्तर जिसमें उसने ईश्वर को समझ लिया, उसको नमन करता हॅू।
णमों सिद्धाणं – (वो पुरूष जिसने स्वंय को समझ लिया हो) अध्यापक को नमन करता हँू।
णमों आयरियाणं – आचार्य, (आचरण में ढ़ालने वाले) को नमन करता हँू।
णमों उबज़्झझायांण- उपाध्याय, (जो धाराप्रवाह से अध्यापन करता हो) को नमन करता हूँ।
णमों लोएसब्बसाहुणं- (संसार के आध्यात्मिक गुरू, साधु) ऐसे योग्य अध्यापक को नमन करता हँू।
हम अपने अध्यापकों का धन्यवाद करते है, जिन्होंने ईश्वर को समझकर स्वंय को सिद्ध कर लिया है और ऐसे अध्यापकों को मैं नमन करता हँू। आज हम कमीटेड हो कि इन सभी चीजों को day to day life में लेकर आयेंगें।
Prof. Sanjay Biyani
Director (Acad.)
(Thoughts delivered in Assembly)